30 October 2011

जिसका लिखा गल्प में बदल गया


जिसका लिखा गल्प में बदल गया

पिछले दिनों जब श्रीलाल शुक्ल को ज्ञानपीठ पुरस्कार देने की घोषणा की गयी तब साहित्यिक हलकों में इसे ’देर आये दुरुस्त आये’ फैसले के तौर पर देखा गया. श्रीलाल शुक्ल को गंभीर रूप से खराब तबियत की अवस्था में अस्पताल में ही ज्ञानपीठ पुरस्कार देने की रस्म निभायी गयी. जाहिर है पुरस्कार के जरिये ज्ञानपीठ ने श्रीलाल शुक्ल से कहीं ज्यादा अपने आप को सम्मानित किया. किसी लेखक के लिए इससे बड़ी उपलब्धि और क्या हो सकती है कि उसका लिखा हुआ साहित्य लोकप्रिय गल्प में तब्दील हो जाये. लोगों की जुबान का हिस्सा बन जाये. रागदरबारी संभवत: हिंदी का एकमात्र ऐसा उपन्यास है, जो प़ढने वालों को वर्षो तक याद रह जाता है. बात-बेबात उसके संवाद दोहराये जाते हैं, उसके चरित्र राह में यहां-वहां चलते हुए दिखाई दे जाते हैं. आजादी की आधी रात को पूरे देश ने नेहरू के जादुई शब्दों की डोर को पकड़कर जिस नियति से साक्षात्कार का सपना देखा था, वह किस तरह दो दशक बीतते-बीतते धराशायी पड़ा था और आम लोगों के मन में किस तरह क्षोभ घुमड़ रहा था, इसे समझने के लिए रागदरबारी से बेहतर कोई दूसरा उपन्यास शायद ही हमारे पास मौजूद है. श्रीलाल शुक्ल ने रागदरबारी में व्यंग्य से भरी भदेस भाषा में आजादी के बाद के भारत का जीवंत इतिहास इस कदर दर्ज किया कि हर कोई सत्य की एक-एक परत को अपनी आंखों से देख सकता था. जानकारों ने यहां तक कह डाला कि आने वाले समय में आजाद भारत का कोई भी इतिहास रागदरबारी को छोड़कर लिखा जाना संभव नहीं है. अब तसवीर के दूसरे पहलू की ओर रुख करते हैं. श्रीलाल शुक्ल की सुध हिंदी जगत को तब आयी, जब ज्ञानपीठ ने उनको पुरस्कार देने की घोषणा की. यह सवाल किसी ने नहीं पूछा कि आखिर रागदरबारी जैसे उपन्यासों के होते हुए हिंदी साहित्य खुद अपने ही देस में दोयम दर्जे के साहित्य में कब और कैसे बदल गया ? हम बुकर पुरस्कार और नोबेल पुरस्कार पानेवालों की तो बलाइयां लेते रहे, लेकिन अपनी ही भाषा में लिखा बेहतरीन साहित्य हमारी नजरों से ओझल क्यों हो गया? जाहिर है इस तरह अपने आप को और अपने समय को पहचानने के सभी रास्ते हिंदी पट्टी ने खुद अपने हाथों से ही बंद कर लिये. एक बड़े लेखक को याद करने का सबसे अच्छा तरीका शायद उन रास्तों को फिर से खोजना और खोलना हो सकता है, जो हमें हमारी पहचान से रूबरू कराते हैं. यह रास्ता बेशक रागदरबारी जैसे उपन्यासों से होकर जाता है.

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