18 August 2009

दुखों का दुभाषिया

अमेरिका में रह रही झुम्पा लाहिरी के पहले कहानी संग्रह interpreter of maladies को पढ़ रहा हु.किताब के कवर पर लिखा हुआ है " बंगाल बोस्टन और उससे भी आगे की काहानियाँ "..इसे तकरीबन ३-४ साल पहले ट्रेन के किसी सफ़र में पढ़ा था ,,जैसे कोई भी दूसरी किताब ऐसे सफ़र में पढ़ी जाती है ...फिर किताब गुम हो गई..संयोग से अचानक किताब फिर से हाथ लग गई है .अब इसे दोबारा पढ़ रहा हूँ ..फिलहाल दो सफ़र के बीच ..नयी जगह पर -पुराने स्थाई जगह की की चिंताओं से मुक्त ना हो पाने की विवशता को झेलता हुआ..
जिसे आज हम इंडियन इंग्लिश लेखन कहते हैं ,उस लेखन में झुम्पा लाहिरी ने अपने लिए थोड़े ही समय में एक अलग मुकाम हासिल किया है..
इस कहानी संग्रह में अपनी जमीन से उखड़े हुए लोगों की जिंदगी को जिस गैर-भावुक लेकिन फिर भी एक साफ़ महसूस किये जा सकने वाली संवेदनशीलता के साथ उकेरा गया वह बरबस हमें अपनी तरफ खींचता है ..
जब मैंने यह किताब पढना शुरू किया तब मैंने सोचा की इसे एक पाठक की तरह न पढ़ कर एक खोजी की तरह पढूं ....और इसे उत्तर-औपनिवेशिक लेखन की विशिष्टताओं के बरक्स परखू ..लेकिन जैसा की किसी भी अच्छे लेखन को पढ़ते हुए होता है..इस किताब को पढ़ते वक़्त भी...मेरी हैसियत एक सामान्य पाठक से ज्यादा नहीं बची.
अमेरिका में बेहतर जीवन की उम्मीद से जा बसे भारतीय लोगों के मानसिक संघर्ष को यहाँ सधे हुए सौम्य स्ट्रोकों से लाइव कैनवास पर उकेरा गया है.छोटी-छोटी बारीकियों के प्रति एक गजब की सजगता कहानियों को विश्वसनीय बनाती है.भारत से जाकर अमेरिका में बस जाना मात्र मिटटी और पानी के बदलाव की घटना नहीं है..बल्कि एक ऐसे संघर्ष की कहानी है जो अपनी परम्पराओं और सांस्कृतिक learning के साथ बिलकुल ही एक नयी दुनिया और जीवन शैली की टकराहट के कारण पैदा होती है.
"दुखों का दुभाषिया " शीर्षक कहानी एक अनूठे प्यार या कहें आकर्षण की दास्ताँ है. कोणार्क मंदिर को देखने आनेवाले पर्यटकों के लिए दुभाषिये की हैसियत से टूरिस्ट गाइड का काम करने वाले मिस्टर कपासी और बंगाली अमेरिकी मिसेज दास के बीच जिस आकर्षण का जन्म होता है..उसे प्यार के किसी टेक्स्ट बुक से नहीं समझाया जा सकता है.. मिस्टर कपासी जिसने कभी कई भाषाओं को सीख कर दुभाषिये के तौर पर दुनिया
भर की समस्याओं को सुलझाने में अपने योगदान के सपने देखे थे... अब अपने गुजराती ज्ञान के कारण लोकल डॉक्टर के पास दुभाषिये का काम करता है. दुखों के दुभाषिये का काम...यानी मरीज के कष्ट, उसकी तकलीफ डॉक्टर को बताता है.लेकिन उसके इस काम को उसकी पत्नी तक महत्वपूर्ण काम नहीं मानती..लेकिन मिसेज दास,मिस्टर कपासी के इस काम को ना सिर्फ महत्वपूर्ण बताती है बल्कि उसके अनुभवों को जानने में रूचि दिखाती है..यही से मिस्टर कपासी के मन में मिसेज दास के लिए आकर्षण पैदा होता है.... सहज आकर्षण की ये कहानी मात्र चाँद घंटों में सिमटी हुई है..लेकिन मानवीय संवेदनाओं पर कहानीकार की पकड़ इस कहानी को स्मरणीय बनाता है..
बाकी कहानियों पर एक दो दिन में.ख़ास तौर पर" मिसेज सेन " और "जब मिस्टर पिर्ज़दा रात के खाने पर आये "पर जल्दी ही..

3 comments:

  1. She is incredible writer. now a days I am going through her latest book "Unaccustomed Earth". You always feel connected with her stories. Its poetic writing.Nothing fancy, very simple words and these words carry lots of emotions.

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  2. jhumpa lahiri ko aaj tak padhne ka mauqa nahi mila hai.. lekin aapne jis dang se unki kahani me samvednao ka zikr kiya hai...padhne ko utsuk ho utha hun...agle post ke inezaar ke saath aapko dhanyavad kahna chahunga.

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  3. दिल को छू गयी आपकी रचना।
    ( Treasurer-S. T. )

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