15 August 2009

आजादी के ६३ वे साल गिरह पर


आजाद देश की उम्र एक साल और बढ़ गयी. टीवी पर देखा कि यह ६३ वाँ सालगिरह है देश कि आजादी का.
लेकिन कही कोई चहल पहल नहीं है.मैं फिलहाल समाचार चैनलों में swine फ्लू का epicentre बताये जा रहे पुणे शहर में हु. तीन रोज पहले ही दिल्ली से आया.दोस्तों के लाख मना करने के बावजूद. खैर छुट्टियां थी और यहाँ आने कि वजहे मौजूद थी इसलिए यहाँ चला आया. swine फ्लू के शहर में. वैसे बहुत अच्छा हुआ.यहाँ नहीं आता तो शायद कुछ छूट जाता.
फिलहाल पुणे को नकाबपोशों का शहर कहा जा सकता है..इसे आप चाहे तो दहशत भरे चेहरों का शहर भी कह सकते हैं. हवाओं में मौत के वाइरस तैर रहे हैं जैसे .. आँखों की नाव में मानो अनजाने भय ने पनाह ले ली है..
हद तो ये है की घर के बाहर क्या घर के भीतर भी लोग swine फ्लू के वाइरस के द्बारा डस लिए जाने की चिंता से दुबले हुए जा रहे हैं .एन 95 मास्क की कालाबाजारी हो रही है..प्रभु वर्ग के लोग अगर इस मास्क का जुगाड़ नहीं कर पा रहे और उनके यहाँ काम करने वाली बाई अगर गलती से वही मास्क पहने पाई जा रही है तो मालकिनों को ही नहीं मालिकों को भी उसके भाग्य से जलन होने लगी है.वे अपने सारे रसूख अपने सारी हाई contact का इस्तेमाल एन ९५ मास्क का जुगाड़ करने के लिए कर रहे हैं..लेकिन एन ९५ मास्क की कालाबाजारी हो रही है.अमीर लोग इसे ५००- १००० में खरीद कर भी अपने आप को ,और अपनी कमाई करने की ताकत को गर्व की निगाह से देख रहे हैं. खैर एक बार जब कालाबाजारी शुरू हो गयी है तब किसी भी मालकिन या मालिक को ज्यादा दिन तक अपने काम वालियों के सामने हीन महसूस करने की नौबत नहीं आने वाली है.बाजार व्यवस्था हो या सरकारी शिकंजाकशी की व्यवस्था , गरीब काम करने वालियों या करने वालों ,बसों में धक्के खाकर ऑफिस पहुचने वालों के हाथ में जरूरी चीज का ना पहुचना ही असली सच्चाई है .खैर आजादी के ६३ वे सालगिरह पर हम एक बात तो यकीनन कह सकते हैं की अतीत में लौटने के लिए हमें अतीत में जाने की जरूरत नहीं है....अतीत तो लगातार बिना बदलाव के हमारे साथ चल रहा है.खासकर उस 90 फीसदी आबादी के  लिए जिनकी आँखें बदलाव की राह देखते -देखते पथरा चुकी है..
निजाम के बदल जाने से आवाम की जिंदगी में बदलाव आ जाने की बात करने का वक़्त पीछे छूट चुका है ..पुणे में swine फ्लू के बहाने आजादी के ६३ वे साल गिरह पर मैं आजाद मुल्क की दास्ताँ का एक हिस्सा देख रहा हु.
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2 comments:

  1. Nice observation. But things have been changing for better and as far as gaps in society are concerned,it is timeless fact. It'll remain forever. Even if we had done better than what we did in past, we could not have changed this reality. Capitalism and cricket are two pillar of modern india. In world of capitalism, you have to live with the fact that home is where the money is.

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  2. हाँ सही कहा ..सबसे अच्छे की जीत का सिद्धांत सभी जगह लागु होता है. आप किसी के तरफ से लड़ाई भले ना लड़ सके लेकिन आप जो कर रहें हाँ आप मतलब हम सब, उसको सेलेब्रेट तो कतई नहीं किया जा सकता... blind कैपिटलिस्ट pursuit को सपोर्ट .नहीं किया जान चाहिए...खैर यहाँ बात सिर्फ पैसे कमाने की नहीं मोरल करप्शन की भी है.....

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