21 August 2009

बाज़ार में महात्मा गाँधी


मैं अभी पुणे में  हूँ  .अचानक पुणे की सड़कों पर घूमते हुए यह नजारा देखा तो ठहर गया और ये तस्वीर उतार ली.यह नजारा पुणे के एम् जी रोड का है..एम् जी रोड यानी महात्मा गांधी रोड. पुणे का मुख्य बाजार ..नए नए ब्रांडों की दुकानों की जगमगाहट से जगमगाता हुआ..लेकिन तभी मन में ये बात कौंधी कि आखिर भारत के बड़े शहरों में बाजारों का नामकरण महात्मा गांधी के नाम पर क्यों किया गया है?
.बाजार और महात्मा गांधी को गलबहियां डाले घूमते हुए या कम से कम एक साथ एक ही छत के नीचे रहते हुए देख कर अचरज होना स्वाभाविक ही है.भारत में कोई भी नामकरण प्रायः बिना किसी तर्क के होता है.और बात अगर महात्मा गाँधी के नाम पर किसी नामकरण का हो तो तर्क के चौखटे के भीतर घुसने की कोई ज़रुरत ही नहीं समझी जाती. बंगलौर,पुणे,लखनऊ,तिरुअनंतपुरम ,चेन्नई,दिल्ली .इन सभी शहरों में एम् जी रोड नाम की एक सड़क पायी जाती है... जो लोग एम् जी रोड का नाम जानते हैं वे ये भी जानते होंगे कि एम् जी रोड इन शहरों का मुख्य बाजार है .एम् जी रोड से पहला अर्थ अब बाजार का ही निकलता है.वैसे मैने कल ही गूगल पर देखा की दिल्ली में जो एम् जी रोड है वह दरअसल मेहरौली- गुडगाँव रोड है,महात्मा गांधी रोड नहीं.उम्मीद है इससे महात्मा गांधी को थोडी राहत   जरूर मिली होगी..
अब इसे महज संयोग  माना  जाए या कुछ और कि महात्मा गाँधी का नाम बाजार पर सितारे कि तरह टांक दिया गया है . मेरे ख़याल से यह एक संयोग ही है.लेकिन यह संयोग भी अपने आप में बड़ा जानलेवा है.. इन शःहरों के एम् जी रोड पर पर घुमते हुए मन में ये धारणा तो बन ही सकती है कि एम् जी यानी महात्मा गांधी बाजार व्यवस्था के बड़े पैरोकार थे ..या  कि गाँधी का मुख्य एजेंडा भारत में बाजार व्यवस्था को कायम करना था..और इन बाजारों का नामकरण उनके इसी अथक प्रयास के कारण उनके नाम पर किया गया है.आपको इस बात पर हंसी आ सकती है  लेकिन ये बात ध्यान में राखी जानी चाहिए कि धारणाएं ऐसे ही बनायी जाती हैं और सामूहिक स्मृतियों को इन्ही हथियारों से मिटाया जाता है.
वैसे भारत में नामकरण जिस तरह से होता है वह जान लेने के बाद किसी को कोई ख़ास ताज्जुब नहीं होना चाहिए . क्यूकि आज भारत में तकरीबन हर चीज का नामकरण जवाहरलाल नेहरु,इंदिरा गाँधी और सबसे बढ़कर  राजीव  गाँधी के नाम पर किये जाने आपाधापी मची हुई है . देश की जितनी ज्यादा संपत्ति पर नेहरु गांधी परिवार का नाम चस्पां कर दिया जाए यही एकमात्र लक्ष्य बन गया दिखाई देता है.इन नामकरणों के पीछे किसी तर्क को खोजना नामुमकिन है..लेकिन नामकरण की इस राजनीति में महात्मा गांधी को जिस तरह खींच लिया गया है..उससे किसी की रूह रोती हो या न हो महात्मा गाँधी की रूह तो जरूर रोती होगी. बाजार व्यवस्था के विस्तार और जगमगाते वैश्वीकरण के प्रतीक एम् जी रोड में टंका हुआ महात्मा गांधी का नाम सत्य और अहिंसा के उनके पूरे दर्शन पर ही प्रश्नावाचक चिह्न लगता है.क्यूकि बाजार में अगर किसी चीज का मोल सब से कम है तो वह है सच का मोल और अपने विस्तार के लिए बाजार जिन तरीकों पर निर्भर है..वे विभिन्न रूप में हिंसक ही कहे जा सकते हैं.हिंसा और झूठ ही बाजार का संबसे मुख्य हथियार है...इस बाजार का नामकरण महात्मा गाँधी के नाम पर करना गांधी के सिद्धांतों और उनके संघर्षों के प्रति हिंसक उपेक्षा की भावना को दर्शाता है .

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