जॉन द्रमनी महामा घाना के राष्ट्रपति हैं. वे कई किताबों के लेखक भी हैं. मंडेला की स्मृति में उनका यह लेख न्यूयार्क टाइम्स में छपा है. अखरावट
कई वर्षों तक ऐसा लगता रहा कि नेल्सन मंडेला की सिर्फ एक तसवीर ली गयी है. इसमें नेल्सन मंडेला के बाल बिखरे हुए से थे. गाल भरा हुआ था. उनकी निगाहों में एक गहरी प्रतिबद्धता को महसूस किया जा सकता था. लेकिन, यह एक ब्लैक एंड व्हाइट तसवीर थी. यह काफी धुंधली थी और काफी पुरानी नजर आती थी. यह एक ऐसे व्यक्ति के दस्तावेज के समान थी, जिसका वक्त अरसा पहले बीत चुका था.
1960 के दशक के शुरुआती दिनों में अफ्रीकी मूल निवासियों के साथ किये जा रहे बर्बर व्यवहार और दमन से आजिज आकर, मंडेला ने सफलतापूर्वक गुरिल्ला युद्ध की हिंसक योजना प्रस्तावित की थी. इसके मूल में अफ्रीकी नेशनल कांग्रेस की सैन्य शाखा के गठन का विचार था. अपने गठन के कुछ वर्षों के भीतर ही, इस सैन्य इकाई, जिसे देश की बरछी (उमकोंतो वी सिजवे) नाम दिया गया था, का पता लग गया और इसके शीर्ष नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया. 1964 में मंडेला को देश-द्रोह का दोषी करार दिया गया और उन्हें आजन्म कारावास की सजा सुना दी गयी.
मुकदमे की सुनवाई के दौरान, अपने वक्तव्य में मंडेला ने कहा था, ‘ मैंने हमेशा से एक लोकतांत्रिक और स्वतंत्र समाज की कामना की है, जिसमें सभी लोग समभाव और बराबरी के मौके के साथ रह सकें.’ उन्होंने कहा, ‘यह वह आदर्श है, जिसके लिए मैं जीना चाहता हूं और जिसे मैं हासिल करना चाहता हूं. और अगर जरूरत पड़ी, तो इस आदर्श के लिए मैं अपने प्राणों की कुर्बानी देने को भी तैयार हूं.’ मैं तब महज पांच साल का था, जब मंडेला कैदी नंबर 46664 बने थे और उन्हें उनके जीवन के बचे हुए हिस्से को रॉबेन द्वीप पर बिताने के लिए भेज दिया गया था. रॉबेन द्वीप केप टाउन के ठीक उत्तर में स्थित महज पांच वर्गमील का जमीन का टुकड़ा है. यहां कुष्ठ रोगियों की एक बस्ती थी, एक पागलखाना था और कई जेल थे. यह निर्वासन, सजा और अलगाव की भूमि थी. यहां लोगों को भेजा जाता था और भुला दिया जाता था.
लेकिन, उस फोटोग्राफ की चीखती हुई छवि ने हमें भूलने नहीं दिया. 1970 के दशक में मैं अफ्रीकी यूथ कमांड का सदस्य था. यह सामाजिक और राजनीतिक अन्यायों के खिलाफ विरोध करनेवाले कार्यकर्ताओं का एक समूह था. हम मंडेला को अपना आदर्श मानते थे. हम उस फोटोग्राफ के पोस्टर्स को अपने डॉरमिट्री के कमरों में टांगते थे. हम उस तसवीर को परचों पर छापते थे. हमने मंडेला को अप्रासंगिकता के बियाबान में गुम हो जाने देने से इनकार कर दिया. हमने मार्च निकाले, प्रदर्शन किये, कंसर्ट्स का आयोजन किया, बहिष्कार किया, याचिकाओं पर दस्तखत किये. प्रेस वक्तव्य जारी किया. रंगभेद की बुराई का विरोध करने के लिए और मंडेला का नाम लोगों की जुबान पर बनाये रखने के लिए, हमसे जो कुछ बन सकता था, हमने वह सब किया. यहां तक कि हमने सरकार की इजाजत से श्वेत श्रेष्ठता का प्रचार करनेवाले जॉन वॉर्स्टर, जिमी क्रूगर जैसे नेताओं का पुतला भी जलाया.
अफ्रीकी महाद्वीप पर आजादी, एक हकीकत थी, जिसके लिए हम संघर्ष करने को तैयार थे. लेकिन, इसके बावजूद हम लोगों ने कहीं न कहीं अपने मन को समझा दिया था कि मंडेला अपने जीवन की आखिरी सांस तक जेल में ही रहेंगे और हमारे जीवन के खत्म हो जाने के बाद भी दक्षिण अफ्रीका में समानता का राज स्थापित नहीं होगा. तब, 11 फरवरी, 1990 को एक चमत्कार हुआ. मंडेला जेल से बाहर चल कर आये.
दुनिया इस क्षण को देखकर थम गयी. हमारे लिए यह कल्पना करना कठिन था कि अगर हम मंडेला की जगह होते, तो हम क्या करते? हमसब एक बखान न किये जा सकनेवाले गुस्से, बदले की कार्रवाई का इंतजार कर रहे थे. किसी भी तार्किक दिमाग के लिए इसका औचित्य समझना शायद कठिन नहीं होता. उनके जीवन के 27 साल नष्ट हो गये थे. चमकते हुए निर्दयी सूरज के नीचे चूना-पत्थर के खदान में हर रोज काम करने से, वह भी बिना किसी सुरक्षा चश्मे के, उनकी आंसुओं की ग्रंथियां नष्ट हो गयी थीं.. इसने वर्षों तक मंडेला से रोने की क्षमता से भी महरूम कर दिया. लेकिन, इसके बावजूद, इस व्यक्ति ने माफ कर देने की वकालत की. ‘अपने दृढ़ विश्वास के कारण जेल जाना और जिस चीज में आप यकीन करते हैं, उसके लिए हर कष्ट को सहने के लिए तैयार रहना, अपने साथ ज्यादती नहीं है. परिणामों की परवाह किये बगैर धरती पर अपने कर्तव्यों का निर्वाह करना किसी व्यक्ति की सफलता है.’
जब मैं पहली बार मंडेला से मिला, तब तक उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार से नवाजा जा चुका था. वे उस देश के राष्ट्रपति चुन लिये गये थे, जिस धरती पर उन्हें और दूसरे सभी अश्वेत लोगों को कुछ समय पहले तक मताधिकार से वंचित रखा गया था. वे एक आइकॉन बन गये थे- सिर्फ आशाओं के ही नहीं, बल्कि जख्मों के भरने की संभावना के भी.
मैं तब राजनीति में नया था. संसद का सदस्य और संचार मंत्री था. यह केप टाउन की मेरी पहली यात्रा थी. मैं दोस्तों के साथ काफी देर बाहर रहा था और होटल के अपने कमरे तक जाने के लिए लिफ्ट का इंतजार कर रहा था. जब लिफ्ट का दरवाजा खुला, तो सामने मंडेला थे. मैं एक कदम पीछे हट गया. उस घड़ी मैं जम सा गया था. जब मंडेला बाहर निकले, तब उन्होंने मेरी तरफ देखा और अपना सिर हिलाया. मैं उनके इस शिष्टाचार का जवाब नहीं दे पाया. मैं अपनी जगह से हिल नहीं पाया, न ही पलकें झपका पाया. मैं बस स्तब्ध सा वहां खड़ा रहा, यह सोचते हुए कि मेरी आंखों के सामने वह व्यक्ति था, जिसके लिए हमने मार्च निकाले थे, गाने गाये थे, आंसू बहाये थे. यह उस ब्लैक एंड व्हाइट फोटोग्राफ में जज्ब हो गया व्यक्ति है. यहां वह व्यक्ति था, जिसने दक्षिण अफ्रीका के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे अफ्रीका महाद्वीप की नयी नैतिक धुरी का निर्माण किया था.
यह महज संयोग नहीं है कि मंडेला की जेल से रिहाई के बाद के वर्षों में अफ्रीका का एक बड़ा हिस्सा लोकतंत्र और कानून के शासन की ओर मुड़ता गया. मंडेला ने जिस तरह से शांति का प्रयोग आजादी के लिए किया, उसने अफ्रीका को यह दिखाया कि अगर हमें उपनिवेशवाद द्वारा पैदा किये गये बंटवारे और खुद अपने द्वारा दिये गये जख्मों से बाहर निकलना है, तो दयालुता और क्षमा करने की भावना को गवर्नेंस का अहम हिस्सा बनना होगा. लोगों की तरह की देशों को भी अपने पर गुजरे दुखों को समझना चाहिए और उन्हें दूर करने के लिए रास्तों की खोज करनी चाहिए. यह टूटे हुए को फिर से एक बनाने के लिए जरूरी है.
उस रात मैंने मंडेला को अपने बगल से गुजरते हुए देखा था. मैं समझता हूं कि उनकी कहानी- ‘आजादी का लंबा रास्ता’ (द लांग वॉक टू फ्रीडम), अफ्रीका महाद्वीप की भी कहानी थी. किसी जमाने में हमारे महाद्वीप पर जिस घृणा की भावना का बोलबाला था, उसकी जगह आज प्रेरणा (इंसपिरेशन) ने ले ली है. युद्ध, तख्तापलट, रोग, गरीबी और अत्याचार के दुखों के हमले के कारण महाद्वीप में बहनेवाली निराशा की अंत:धारा का स्थान एक टिकाऊ और लगातार विस्तार लेते हुए संभावनाओं के एहसास ने ले लिया है.
जब नेल्सन मंडेला जेल में थे, तब सिर्फ उनका ही रूपांतरण नहीं हो रहा था, हम सभी उन वर्षों में बदल रहे थे. और अफ्रीका आज अगर बेहतर हुआ है, तो उसमें इसकी बड़ी भूमिका है.
कई वर्षों तक ऐसा लगता रहा कि नेल्सन मंडेला की सिर्फ एक तसवीर ली गयी है. इसमें नेल्सन मंडेला के बाल बिखरे हुए से थे. गाल भरा हुआ था. उनकी निगाहों में एक गहरी प्रतिबद्धता को महसूस किया जा सकता था. लेकिन, यह एक ब्लैक एंड व्हाइट तसवीर थी. यह काफी धुंधली थी और काफी पुरानी नजर आती थी. यह एक ऐसे व्यक्ति के दस्तावेज के समान थी, जिसका वक्त अरसा पहले बीत चुका था.
1960 के दशक के शुरुआती दिनों में अफ्रीकी मूल निवासियों के साथ किये जा रहे बर्बर व्यवहार और दमन से आजिज आकर, मंडेला ने सफलतापूर्वक गुरिल्ला युद्ध की हिंसक योजना प्रस्तावित की थी. इसके मूल में अफ्रीकी नेशनल कांग्रेस की सैन्य शाखा के गठन का विचार था. अपने गठन के कुछ वर्षों के भीतर ही, इस सैन्य इकाई, जिसे देश की बरछी (उमकोंतो वी सिजवे) नाम दिया गया था, का पता लग गया और इसके शीर्ष नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया. 1964 में मंडेला को देश-द्रोह का दोषी करार दिया गया और उन्हें आजन्म कारावास की सजा सुना दी गयी.
मुकदमे की सुनवाई के दौरान, अपने वक्तव्य में मंडेला ने कहा था, ‘ मैंने हमेशा से एक लोकतांत्रिक और स्वतंत्र समाज की कामना की है, जिसमें सभी लोग समभाव और बराबरी के मौके के साथ रह सकें.’ उन्होंने कहा, ‘यह वह आदर्श है, जिसके लिए मैं जीना चाहता हूं और जिसे मैं हासिल करना चाहता हूं. और अगर जरूरत पड़ी, तो इस आदर्श के लिए मैं अपने प्राणों की कुर्बानी देने को भी तैयार हूं.’ मैं तब महज पांच साल का था, जब मंडेला कैदी नंबर 46664 बने थे और उन्हें उनके जीवन के बचे हुए हिस्से को रॉबेन द्वीप पर बिताने के लिए भेज दिया गया था. रॉबेन द्वीप केप टाउन के ठीक उत्तर में स्थित महज पांच वर्गमील का जमीन का टुकड़ा है. यहां कुष्ठ रोगियों की एक बस्ती थी, एक पागलखाना था और कई जेल थे. यह निर्वासन, सजा और अलगाव की भूमि थी. यहां लोगों को भेजा जाता था और भुला दिया जाता था.
लेकिन, उस फोटोग्राफ की चीखती हुई छवि ने हमें भूलने नहीं दिया. 1970 के दशक में मैं अफ्रीकी यूथ कमांड का सदस्य था. यह सामाजिक और राजनीतिक अन्यायों के खिलाफ विरोध करनेवाले कार्यकर्ताओं का एक समूह था. हम मंडेला को अपना आदर्श मानते थे. हम उस फोटोग्राफ के पोस्टर्स को अपने डॉरमिट्री के कमरों में टांगते थे. हम उस तसवीर को परचों पर छापते थे. हमने मंडेला को अप्रासंगिकता के बियाबान में गुम हो जाने देने से इनकार कर दिया. हमने मार्च निकाले, प्रदर्शन किये, कंसर्ट्स का आयोजन किया, बहिष्कार किया, याचिकाओं पर दस्तखत किये. प्रेस वक्तव्य जारी किया. रंगभेद की बुराई का विरोध करने के लिए और मंडेला का नाम लोगों की जुबान पर बनाये रखने के लिए, हमसे जो कुछ बन सकता था, हमने वह सब किया. यहां तक कि हमने सरकार की इजाजत से श्वेत श्रेष्ठता का प्रचार करनेवाले जॉन वॉर्स्टर, जिमी क्रूगर जैसे नेताओं का पुतला भी जलाया.
अफ्रीकी महाद्वीप पर आजादी, एक हकीकत थी, जिसके लिए हम संघर्ष करने को तैयार थे. लेकिन, इसके बावजूद हम लोगों ने कहीं न कहीं अपने मन को समझा दिया था कि मंडेला अपने जीवन की आखिरी सांस तक जेल में ही रहेंगे और हमारे जीवन के खत्म हो जाने के बाद भी दक्षिण अफ्रीका में समानता का राज स्थापित नहीं होगा. तब, 11 फरवरी, 1990 को एक चमत्कार हुआ. मंडेला जेल से बाहर चल कर आये.
दुनिया इस क्षण को देखकर थम गयी. हमारे लिए यह कल्पना करना कठिन था कि अगर हम मंडेला की जगह होते, तो हम क्या करते? हमसब एक बखान न किये जा सकनेवाले गुस्से, बदले की कार्रवाई का इंतजार कर रहे थे. किसी भी तार्किक दिमाग के लिए इसका औचित्य समझना शायद कठिन नहीं होता. उनके जीवन के 27 साल नष्ट हो गये थे. चमकते हुए निर्दयी सूरज के नीचे चूना-पत्थर के खदान में हर रोज काम करने से, वह भी बिना किसी सुरक्षा चश्मे के, उनकी आंसुओं की ग्रंथियां नष्ट हो गयी थीं.. इसने वर्षों तक मंडेला से रोने की क्षमता से भी महरूम कर दिया. लेकिन, इसके बावजूद, इस व्यक्ति ने माफ कर देने की वकालत की. ‘अपने दृढ़ विश्वास के कारण जेल जाना और जिस चीज में आप यकीन करते हैं, उसके लिए हर कष्ट को सहने के लिए तैयार रहना, अपने साथ ज्यादती नहीं है. परिणामों की परवाह किये बगैर धरती पर अपने कर्तव्यों का निर्वाह करना किसी व्यक्ति की सफलता है.’
जब मैं पहली बार मंडेला से मिला, तब तक उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार से नवाजा जा चुका था. वे उस देश के राष्ट्रपति चुन लिये गये थे, जिस धरती पर उन्हें और दूसरे सभी अश्वेत लोगों को कुछ समय पहले तक मताधिकार से वंचित रखा गया था. वे एक आइकॉन बन गये थे- सिर्फ आशाओं के ही नहीं, बल्कि जख्मों के भरने की संभावना के भी.
मैं तब राजनीति में नया था. संसद का सदस्य और संचार मंत्री था. यह केप टाउन की मेरी पहली यात्रा थी. मैं दोस्तों के साथ काफी देर बाहर रहा था और होटल के अपने कमरे तक जाने के लिए लिफ्ट का इंतजार कर रहा था. जब लिफ्ट का दरवाजा खुला, तो सामने मंडेला थे. मैं एक कदम पीछे हट गया. उस घड़ी मैं जम सा गया था. जब मंडेला बाहर निकले, तब उन्होंने मेरी तरफ देखा और अपना सिर हिलाया. मैं उनके इस शिष्टाचार का जवाब नहीं दे पाया. मैं अपनी जगह से हिल नहीं पाया, न ही पलकें झपका पाया. मैं बस स्तब्ध सा वहां खड़ा रहा, यह सोचते हुए कि मेरी आंखों के सामने वह व्यक्ति था, जिसके लिए हमने मार्च निकाले थे, गाने गाये थे, आंसू बहाये थे. यह उस ब्लैक एंड व्हाइट फोटोग्राफ में जज्ब हो गया व्यक्ति है. यहां वह व्यक्ति था, जिसने दक्षिण अफ्रीका के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे अफ्रीका महाद्वीप की नयी नैतिक धुरी का निर्माण किया था.
यह महज संयोग नहीं है कि मंडेला की जेल से रिहाई के बाद के वर्षों में अफ्रीका का एक बड़ा हिस्सा लोकतंत्र और कानून के शासन की ओर मुड़ता गया. मंडेला ने जिस तरह से शांति का प्रयोग आजादी के लिए किया, उसने अफ्रीका को यह दिखाया कि अगर हमें उपनिवेशवाद द्वारा पैदा किये गये बंटवारे और खुद अपने द्वारा दिये गये जख्मों से बाहर निकलना है, तो दयालुता और क्षमा करने की भावना को गवर्नेंस का अहम हिस्सा बनना होगा. लोगों की तरह की देशों को भी अपने पर गुजरे दुखों को समझना चाहिए और उन्हें दूर करने के लिए रास्तों की खोज करनी चाहिए. यह टूटे हुए को फिर से एक बनाने के लिए जरूरी है.
उस रात मैंने मंडेला को अपने बगल से गुजरते हुए देखा था. मैं समझता हूं कि उनकी कहानी- ‘आजादी का लंबा रास्ता’ (द लांग वॉक टू फ्रीडम), अफ्रीका महाद्वीप की भी कहानी थी. किसी जमाने में हमारे महाद्वीप पर जिस घृणा की भावना का बोलबाला था, उसकी जगह आज प्रेरणा (इंसपिरेशन) ने ले ली है. युद्ध, तख्तापलट, रोग, गरीबी और अत्याचार के दुखों के हमले के कारण महाद्वीप में बहनेवाली निराशा की अंत:धारा का स्थान एक टिकाऊ और लगातार विस्तार लेते हुए संभावनाओं के एहसास ने ले लिया है.
जब नेल्सन मंडेला जेल में थे, तब सिर्फ उनका ही रूपांतरण नहीं हो रहा था, हम सभी उन वर्षों में बदल रहे थे. और अफ्रीका आज अगर बेहतर हुआ है, तो उसमें इसकी बड़ी भूमिका है.
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