नालंदा महाविहार ,नालंदा विश्वविद्यालय .. आज से लगभग 800 साल पहले इस विश्व के सबसे पुराने और सबसे बड़े आवासीय विश्वविद्यालय को तुर्क हमलावर बख्तियार खिलजी ने भारी क्षति पहुचाई और नालंदा महाविहार धीरे -धीरे ना सिर्फ समय और विस्मृति के मलवे में, बल्कि सचमुच के ईंट- पत्थर और मिट्टियों के भीतर दफन हो गया ..रेत पर पड़े आदमी के पैर के निशानों की तरह ज्ञान के इस भव्य केंद्र का नामोनिशान ही मिट गया..लेकिन कुछ निशाँ समय के निर्मम चोटों से पूरी तरह मिटते नहीं हैं बल्कि फिर से झाँकने लगते हैं ...दरअसल वैसे निशाँ जो सिर्फ जमीन पर नहीं होते बल्कि जमीन के भीतर तक धंसे होते हैं ..वे निशाँ जिनकी जड़ें होती हैं ,सदियों की झुलसती सुखाड़ को भी झेल लेने का माद्दा रखते हैं , हैं और फिर उग आते है.
नालंदा के अवशेषों में शायद ऐसी ही ताकत थी. आज नालंदा हम सब के सामने है. साक्षात् .हम उसके खंडहरों में अपने आप को खोज सकते हैं..क्योंकि ज्ञान कि जो परम्परा नालंदा में विकसित हुई वो भारत में ही नहीं दुनिया भर में फैली..और अलग अलग रौशन्दानों से थोड़ा थोड़ा छानकर ,हम तक पहुचती रही..भले अनजाने में ही.नालंदा महाविहार का इतिहास आप किताबों से पढ़ सकते हैं..विकिपीडिआ से भी नालंदा के बारे में काफी कुछ जाना जा सकता है. चाहें तो यू ट्यूब पर इस लिंक को(http://www.youtube.com/watch?v=k7UR9UEY79k) आजमायें काफी कुछ ,और काफी हद तक सही ..(पूरी तथ्यात्मकता का इसमें अभाव है.) जानकारी आपको मिल जायेगी.. लेकिन अगर आप नालंदा के सहारे अपने आप को, अपनी जड़ों को जानना चाहते हैं..अपने दिमाग की सलेट पट्टी पर लिखे हर्फों को अगर आप पहचानना चाहते हैं तो आपको नालंदा खुद जाना चाहिए..क्योंकि आप खुशनसीब हैं कि नालंदा के अवशेष इस रूप में मौजूद हैं कि उनसे आप बातें कर सकते हैं...अगर आप थोड़ी अंतरदृष्टी का सहारा लें तो वहां.बौद्ध धर्म कि ज्ञान कि विशाल परम्पर को अपने भीतर जब्ज कर सकते हैं.फिलहाल आप इन तस्वीरों से काम चलाइये और देखिये विश्व के धरोहर को...
खुदाई से पहले नालंदा
नालंदा का स्तूप ..यहाँ तीन स्तूपों के निर्माण के चिह्न मिलते हैं..जो अलग अलग काल में अलग अलग राजाओं ने बनवाए थे...
नालंदा महाविहार में प्रवेश
नालंदा महाविहार बहुमंजिला थी
अध्ययन हाल और छात्रों के कमरे
अध्ययन हाल और छात्रों के कमरे
निर्माण के स्तर
पानी का कुआं
पानी का कुआं
पानी का कुआं
हवन और खाना बनाने के लिए चूल्हा
हवन और खाना बनाने के लिए चूल्हा
पार्क और पूजा स्थल
अलग अलग कालों में हुए निर्माण के अलग अलग स्तर
जी हां फिलहाल तो इन्ही चित्रों से काम चला रहे हैं.वैसे शुक्रिया एक बेहतरीन दृश्यावली के लिये.
ReplyDeleteदृष्यावली सचमुच हृदय को छू गयी।
ReplyDeleteबेहद उम्दा प्रस्तुति ! गौरवपूर्ण अतीत के मूल्यवान अवशेष-चिह्न ! आभार ।
ReplyDeleteनालंदा की बुलंदियों को अभी तक किताबों के जरिए कल्पनालोक में महसूस करने की कई कोशिशें की थी...
ReplyDeleteआज साकार हो पाईं हैं...
जाने की इच्छा और प्रबल हुई...धन्यवाद...
ATI MANORAM DRISHYO KA UMDA SANKALAN, YE AWSHESH NAHI APITU RASHTRIYA DHAROHAR HE JO HAMARE SUNDER ITIHAAS KO SAJEEW KARTE HE
ReplyDelete不斷的砍伐用的雖是小斧,卻能砍倒最堅硬的橡樹。 ..................................................
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