अफ्रीकी साहित्य खासकरआधुनिक अफ्रीकी उपन्यास
के पितामह कहे जानेवाले चिनुआ अचेबे के निधन के बाद पर यह लेख संशोधनों
के साथ फॉरवर्ड प्रेस में छपा था. असंशोधित लेख यह रहा...
पिछले छह दशकों में जिन लोगों ने पश्चिमी सभ्यता की श्रेष्ठता के गढे गये मिथक को ध्वस्त करने में योगदान दिया उनमें अचेबे का नाम प्रमुख है. अचेबे ने न सिर्फ अफ्रीकी लेखन को विश्व मानचित्र पर जगह दिलायी, बल्कि इस दुष्प्रचार को भी मुंहतोड़ जवाब दिया कि 'अफ्रीकी नस्लीय रूप से हीन हैं.' नेल्सन मंडेला ने अचेबे को अफ्रीका को बाकी दुनिया तक ले कर जाने वाला और ऐसा लेखक कहा है, जिसके साथ रहते हुए "जेल की दीवारें टूट गयी थीं.’’ इससे थोड़ा और आगे जाकर यह कहा जा सकता है कि अचेबे उन लेखकों में शामिल रहे, जिन्होंन यह बताया कि तीसरी दुनिया के लोग, खासकर इन देशों के जनजातीय समाज किस तरह साझे इतिहास से बंधे हुए हैं.
थिंग्स फाल अपार्ट/ द सेंटर कांट होल्ड (चीजें बिखर जाती हैं, केंद्र ही स्थिर नहीं रह पाता). चिुनुआ अचेबे ने अपने पहले और बहुचर्चित उपन्यास थिंग्स फॉल अपार्ट का शीर्षक आइरिश कवि वाइबी येट्स की कविता सेकंड कमिंग की इन पंक्तियों से लिया. अपने इस उपन्यास में, जिसकी अब तक करीब सवा करोड़ कॉपी बिक चुकी है और 50 से अधिक भाषाओं में जिसका अनुवाद हो चुका है, चिनुआ अचेबे ने अफ्रीकी समाज की धुरी के ही चरमरा जाने की ऐतिहासिक त्रासदी को बयां किया. द गार्डियन ने इस उपन्यास की समीक्षा करते हुए लिखा था,‘‘इस उपन्यास ने अफ्रीका बारे में पश्चिम के नजरिये को सिर के बल खड़ा कर दिया"- वह नजरिया जो अब तक सिर्फ गोरे उपनिवेशवादियों के दृष्टिकोण पर आधारित था.
यह उपनिवेशवादी नजरिया क्या है? यह कि अफ्रीका का उपनिवेशीकरण ‘‘हीन’’ और ‘‘आदिम’’ की संज्ञा से नवाजे गये लोगों को सभ्य बनाने के लिए किया गया था. यह वह वैचारिक आधार था, जिसका सहारा लेकर अपनी तमाम हिंसा और बर्बरता के रक्त रंजित इतिहास के बावजूद यूरोप ने अफ्रीका, एशिया, अमेरिका, आॅस्ट्रेलिया के उपनिवेशीकरण को वैधानिकता प्रदान करने की कोशिश की है.. ‘‘थिंग्स फॉल अपार्ट’’ सिर्फ नाइजीरिया, या अफ्रीका का नहीं, दुनिया के उन तमाम मुल्कों का उपन्यास बन जाता है, जिन्हें अपने तथाकथित सभ्यता मिशन में यूरोपीय शक्तियों द्वारा अपना गुलाम बनाया गया था. यह उपन्यास उस पश्चिमी प्रचार को बेहद रचनात्मक तरीके से ध्वस्त करता है, जिसके मुताबिक गोरों के आगमन से पहले अफ्रीकी कबीलाई समाज न्याय और शासन की किसी भी अवधारणा से अपरिचित था. थिंग्स फॉल अपार्ट में चिनुआ अचेबे दुनिया के पाठकों को गोरों के आगमन से ठीक पहले के अफ्रीकी कबीलाई समाज में जाते हैं और यह दिखाते हैं कि भले उपर से देखने पर यह समाज ‘‘आधुनिकता’’ के सांचे से कहीं बार छिटका हुआ और आदिम नजर आता है, लेकिन अपने आंतरिक रूप में इन समाजों में भी न्याय, शासन, शान्ति की चाहत कुछ वैसी ही थी, जिस पर आधुनिक यूरोप "गर्व" करता है. अचेबे इस तथाकथित बर्बर अफ्रीकी समाज को यहां ‘‘सभ्य" यूरोपीय समाज के बरक्स रखते हैं और यह दिखाते हैं कि किस तरह उनके आगमन के बाद परंपरागत अफ्रकी सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनतिक संस्थाएं तहस-नहस कर दी गयीं. यह उपन्यास साम्राज्यवादी शोषण के वैश्विक चरित्र को सामने लाता है. यह बेवजह नहीं है कि थिंग्स फॉल अपार्ट पढ़ते हुए आपको अचानक छोटा नागपुर पठार पर लड़ते हुए सिद्धो-कान्हो और बिरसा मुंडा याद आ जाते हैं, जो अपनी आजादी, परंपरागत संस्कृति और धार्मिक विश्वास की रक्षा करने के लिए उठ खड़े हुए थे.
प्ेरिस रिव्यू को करीब डेढ़ दशक पहले दिये गये साक्षात्कार में चिनुआ अचेबे ने कहा था, "जब मैंने स्कूल जाना शुरू किया और पढ़ना सीखा, मेरा सामना दूसरे लोगों और दूसरी धरती की कहानियों से हुआ. ये कहानियां मुझे बहुत अच्छी लगती थीं. इनमें कई अजीब-अतार्किक किस्म की होती थीं. थोड़ा और बड़ा होने पर रोमांच कथाओं से मेरा वास्ता पड़ा. तब मुझे नहीं पता था कि मुझे उन बर्बर-आदिम लोगों के साथ खड़ा होना है, जिनका मुठभेड़ अच्छे गोरे लोगों से हुआ था. मैंने सहज बोध से गोरे लोगों का पक्ष लिया. वे अच्छे थे! वे काफी अच्छे थे! बुद्धिमान थे! दूसरी तरफ के लोग ऐसे नहीं थे. वे मूर्ख थे. बदसूरत थे. इस तरह मुझे "अपनी कहानी के न होने" के खतरे से परिचय हुआ. एक महान कहावत है- जब तक शेर की तरफ से इतिहास लिखनेवाला नहीं होगा, जब तक शिकारी का इतिहास हमेशा शिकारी को ही महिमामंडित करेगा. यह बात बहुत बाद तक मेरी समझ में नहीं आयी. जब मुझे एहसास हुआ कि मुझे लेखक बनना है, तब मुझे यह पता था कि मुझे वह इतिहासकार बनना है जो शेर का इतिहास लिखे, शिकारी का नहीं. यह किसी अकेले का काम नहीं है. यह एक ऐसा काम है, जिसे हम सबको मिलकर साथ करना है, ताकि शिकार के इतिहास में शेर की पीड़ा, उसका कष्ट, उसकी बहादुरी भी झलके."
जाहिर है चिनुआ अचेबे को यह मालूम था कि उन्हें सिर्फ शब्दों की साधना नहीं करनी है, बल्कि शब्दों के सहारे एक खोये और अपमानित किये गये इतिहास को फिर से खड़ा करना है. अफ्रीका पर लिखे गये उनके उपन्यासों की ट्रायोलाजी- "थिंग्स फाल अपार्ट", "नो लॉन्गर एट ईज" और "ऐरो ऑफ गॉड" में उनकी इस कोशिश को साफ महसूस किया जा सकता है. लेकिन इस क्रम मे वे कहीं भी इतिहास को लौटा लाने की नोस्टालजिया से ग्रस्त नहीं दिखते और अफ्रीकियों की आलोचना और उन पर व्यंग्य करने से भी नहीं कतराते हैं. उनका चैथा उपन्यास ‘‘ ए मैन ऑफ द पीपुल’’ इसकी मिसाल है.
.अपने ऐतिहासिक लेख ‘‘ एन इमेज ऑफ अफ्रीका: रेसिज्म इन कोनराडस हार्ट ऑफ डार्कनेस’’(1975) में अचेबे ने कोनराड .( जोसेफ कोनराड ने अफ्रीका पर 'हार्ट ऑफ डार्कनेस' नामक उपन्यास बर्बर बनाम सभ्यता के विमर्श पर केंद्रित करके लिखा था) की इस बात के लिए तीखी आलोचना की कि इसमें अफ्रीकी महादेश को पहचान में आ सकने लायक मानवता के किसी भी चिह्न से खाली युद्धभूमि में बदल दिया और अफ्रीकियों की भूमिका परजीवी तक सीमित कर दी गयी.
चिनुआ अचेबे का पूरे लेखन में शोषित अश्वेतों का इतिहासकार होने की जद्दोजहद दिखायी देती है. खुद उन्होंने एक साक्षात्कार में कहा था, ‘‘लेखक सिर्फ लेखक नहीं होता. वह एक नागरिक भी होता है.’’ उनका मानना था कि गंभीर और अच्छे साहित्य का अस्तित्व हमेशा से मानवता की मदद उसकी सेवा करने के लिए रहा है. चिनुआ अचेबे के लेखन में अफ्रीकी मानवता के प्रति ही नहीं विश्व की तमाम शोषित मानवताओं के प्रति इस पक्षधरता को आसानी से चिह्नित किया जा सकता है.
पिछले छह दशकों में जिन लोगों ने पश्चिमी सभ्यता की श्रेष्ठता के गढे गये मिथक को ध्वस्त करने में योगदान दिया उनमें अचेबे का नाम प्रमुख है. अचेबे ने न सिर्फ अफ्रीकी लेखन को विश्व मानचित्र पर जगह दिलायी, बल्कि इस दुष्प्रचार को भी मुंहतोड़ जवाब दिया कि 'अफ्रीकी नस्लीय रूप से हीन हैं.' नेल्सन मंडेला ने अचेबे को अफ्रीका को बाकी दुनिया तक ले कर जाने वाला और ऐसा लेखक कहा है, जिसके साथ रहते हुए "जेल की दीवारें टूट गयी थीं.’’ इससे थोड़ा और आगे जाकर यह कहा जा सकता है कि अचेबे उन लेखकों में शामिल रहे, जिन्होंन यह बताया कि तीसरी दुनिया के लोग, खासकर इन देशों के जनजातीय समाज किस तरह साझे इतिहास से बंधे हुए हैं.
थिंग्स फाल अपार्ट/ द सेंटर कांट होल्ड (चीजें बिखर जाती हैं, केंद्र ही स्थिर नहीं रह पाता). चिुनुआ अचेबे ने अपने पहले और बहुचर्चित उपन्यास थिंग्स फॉल अपार्ट का शीर्षक आइरिश कवि वाइबी येट्स की कविता सेकंड कमिंग की इन पंक्तियों से लिया. अपने इस उपन्यास में, जिसकी अब तक करीब सवा करोड़ कॉपी बिक चुकी है और 50 से अधिक भाषाओं में जिसका अनुवाद हो चुका है, चिनुआ अचेबे ने अफ्रीकी समाज की धुरी के ही चरमरा जाने की ऐतिहासिक त्रासदी को बयां किया. द गार्डियन ने इस उपन्यास की समीक्षा करते हुए लिखा था,‘‘इस उपन्यास ने अफ्रीका बारे में पश्चिम के नजरिये को सिर के बल खड़ा कर दिया"- वह नजरिया जो अब तक सिर्फ गोरे उपनिवेशवादियों के दृष्टिकोण पर आधारित था.
यह उपनिवेशवादी नजरिया क्या है? यह कि अफ्रीका का उपनिवेशीकरण ‘‘हीन’’ और ‘‘आदिम’’ की संज्ञा से नवाजे गये लोगों को सभ्य बनाने के लिए किया गया था. यह वह वैचारिक आधार था, जिसका सहारा लेकर अपनी तमाम हिंसा और बर्बरता के रक्त रंजित इतिहास के बावजूद यूरोप ने अफ्रीका, एशिया, अमेरिका, आॅस्ट्रेलिया के उपनिवेशीकरण को वैधानिकता प्रदान करने की कोशिश की है.. ‘‘थिंग्स फॉल अपार्ट’’ सिर्फ नाइजीरिया, या अफ्रीका का नहीं, दुनिया के उन तमाम मुल्कों का उपन्यास बन जाता है, जिन्हें अपने तथाकथित सभ्यता मिशन में यूरोपीय शक्तियों द्वारा अपना गुलाम बनाया गया था. यह उपन्यास उस पश्चिमी प्रचार को बेहद रचनात्मक तरीके से ध्वस्त करता है, जिसके मुताबिक गोरों के आगमन से पहले अफ्रीकी कबीलाई समाज न्याय और शासन की किसी भी अवधारणा से अपरिचित था. थिंग्स फॉल अपार्ट में चिनुआ अचेबे दुनिया के पाठकों को गोरों के आगमन से ठीक पहले के अफ्रीकी कबीलाई समाज में जाते हैं और यह दिखाते हैं कि भले उपर से देखने पर यह समाज ‘‘आधुनिकता’’ के सांचे से कहीं बार छिटका हुआ और आदिम नजर आता है, लेकिन अपने आंतरिक रूप में इन समाजों में भी न्याय, शासन, शान्ति की चाहत कुछ वैसी ही थी, जिस पर आधुनिक यूरोप "गर्व" करता है. अचेबे इस तथाकथित बर्बर अफ्रीकी समाज को यहां ‘‘सभ्य" यूरोपीय समाज के बरक्स रखते हैं और यह दिखाते हैं कि किस तरह उनके आगमन के बाद परंपरागत अफ्रकी सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनतिक संस्थाएं तहस-नहस कर दी गयीं. यह उपन्यास साम्राज्यवादी शोषण के वैश्विक चरित्र को सामने लाता है. यह बेवजह नहीं है कि थिंग्स फॉल अपार्ट पढ़ते हुए आपको अचानक छोटा नागपुर पठार पर लड़ते हुए सिद्धो-कान्हो और बिरसा मुंडा याद आ जाते हैं, जो अपनी आजादी, परंपरागत संस्कृति और धार्मिक विश्वास की रक्षा करने के लिए उठ खड़े हुए थे.
प्ेरिस रिव्यू को करीब डेढ़ दशक पहले दिये गये साक्षात्कार में चिनुआ अचेबे ने कहा था, "जब मैंने स्कूल जाना शुरू किया और पढ़ना सीखा, मेरा सामना दूसरे लोगों और दूसरी धरती की कहानियों से हुआ. ये कहानियां मुझे बहुत अच्छी लगती थीं. इनमें कई अजीब-अतार्किक किस्म की होती थीं. थोड़ा और बड़ा होने पर रोमांच कथाओं से मेरा वास्ता पड़ा. तब मुझे नहीं पता था कि मुझे उन बर्बर-आदिम लोगों के साथ खड़ा होना है, जिनका मुठभेड़ अच्छे गोरे लोगों से हुआ था. मैंने सहज बोध से गोरे लोगों का पक्ष लिया. वे अच्छे थे! वे काफी अच्छे थे! बुद्धिमान थे! दूसरी तरफ के लोग ऐसे नहीं थे. वे मूर्ख थे. बदसूरत थे. इस तरह मुझे "अपनी कहानी के न होने" के खतरे से परिचय हुआ. एक महान कहावत है- जब तक शेर की तरफ से इतिहास लिखनेवाला नहीं होगा, जब तक शिकारी का इतिहास हमेशा शिकारी को ही महिमामंडित करेगा. यह बात बहुत बाद तक मेरी समझ में नहीं आयी. जब मुझे एहसास हुआ कि मुझे लेखक बनना है, तब मुझे यह पता था कि मुझे वह इतिहासकार बनना है जो शेर का इतिहास लिखे, शिकारी का नहीं. यह किसी अकेले का काम नहीं है. यह एक ऐसा काम है, जिसे हम सबको मिलकर साथ करना है, ताकि शिकार के इतिहास में शेर की पीड़ा, उसका कष्ट, उसकी बहादुरी भी झलके."
जाहिर है चिनुआ अचेबे को यह मालूम था कि उन्हें सिर्फ शब्दों की साधना नहीं करनी है, बल्कि शब्दों के सहारे एक खोये और अपमानित किये गये इतिहास को फिर से खड़ा करना है. अफ्रीका पर लिखे गये उनके उपन्यासों की ट्रायोलाजी- "थिंग्स फाल अपार्ट", "नो लॉन्गर एट ईज" और "ऐरो ऑफ गॉड" में उनकी इस कोशिश को साफ महसूस किया जा सकता है. लेकिन इस क्रम मे वे कहीं भी इतिहास को लौटा लाने की नोस्टालजिया से ग्रस्त नहीं दिखते और अफ्रीकियों की आलोचना और उन पर व्यंग्य करने से भी नहीं कतराते हैं. उनका चैथा उपन्यास ‘‘ ए मैन ऑफ द पीपुल’’ इसकी मिसाल है.
.अपने ऐतिहासिक लेख ‘‘ एन इमेज ऑफ अफ्रीका: रेसिज्म इन कोनराडस हार्ट ऑफ डार्कनेस’’(1975) में अचेबे ने कोनराड .( जोसेफ कोनराड ने अफ्रीका पर 'हार्ट ऑफ डार्कनेस' नामक उपन्यास बर्बर बनाम सभ्यता के विमर्श पर केंद्रित करके लिखा था) की इस बात के लिए तीखी आलोचना की कि इसमें अफ्रीकी महादेश को पहचान में आ सकने लायक मानवता के किसी भी चिह्न से खाली युद्धभूमि में बदल दिया और अफ्रीकियों की भूमिका परजीवी तक सीमित कर दी गयी.
चिनुआ अचेबे का पूरे लेखन में शोषित अश्वेतों का इतिहासकार होने की जद्दोजहद दिखायी देती है. खुद उन्होंने एक साक्षात्कार में कहा था, ‘‘लेखक सिर्फ लेखक नहीं होता. वह एक नागरिक भी होता है.’’ उनका मानना था कि गंभीर और अच्छे साहित्य का अस्तित्व हमेशा से मानवता की मदद उसकी सेवा करने के लिए रहा है. चिनुआ अचेबे के लेखन में अफ्रीकी मानवता के प्रति ही नहीं विश्व की तमाम शोषित मानवताओं के प्रति इस पक्षधरता को आसानी से चिह्नित किया जा सकता है.
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