17 March 2013

नगमे उसके अब भी जुबां पर हैं...बस उसका नाम नहीं


मुंबई में गुमनाम सी जिन्दगी जी रहे नक्श लायलपुरी के गीत आज भी जवां होती रातों, अलसाई सी सुबहों में हमारे सीने को चाक कर जाते है. नक्श भले दुनिया द्वारा भुला से दिए गए हों, लेकिन उनके गीत बेसाख्ता जुबान को शीरीं बना जाते हैं. नक्श लायलपुरी से मुंबई में मुलाक़ात की फिल्म रिपोर्टर उर्मिला कोरी ने. यह लेख नक्श जी के जीवन और उनके फन को याद कर रहा है..



न जाने क्या हुआ जो तूने छू लिया/ खिला गुलाब सा मेरा बदन/ निखर-निखर गयी संवर -संवर गयी / बना के आईना तुझे ऐ जानेमन... 

इश्क  में लरजता हुआ शायद ही कोई दिल होगा जिसने इस गीत की उंगली थामे कुछ दूरी न तय की होगी.. कहते हैं नाम भले भूल जाए..लफ्ज बचे रहते हैं...और अगर लफ्ज इतने पाकीजा हों तो तो वे सिर्फ बचे ही नहीं रहते...हर दिल का राग बन जाते हैं. फनकार भुला दिया जाता है..लेकिन उसका फन जिन्दा रहता है. ऐसे ही एक फनकार का नाम है नक्श लायलपुरी. 

24 फरवरी 1928को लाहौर के लायलपुर, जो अब फैसलाबाद के नाम से जाना जाता है, में जन्मे मशहूर  गीतकार नक्श लायलपुरी  भले ही इंडस्ट्री द्वारा भुलाए जा चुके हैं लेकिन उनके गीत न जाने क्या हुआ जो तुने छू लिया,  उल्फत में जमाने की हर रस्म, ये मुलाकात एक बहाना है/ प्यार का सिलसिला पुराना है,  चांदनी रात में एक बार तुझे देखा, तुम्हें हो ना हो मुझको तो इतना यकीं है...  जैसे अनगिनत गीत अब भी हर दिल में एक कसक पैदा कर जाते हैं. लाहौर पावर हाऊस में बतौर इंजीनियर काम करनेवाले जगन्नाथ पुरी के घर जन्मे जसवंत राय को शेरो-सुखन की दुनिया में नक्श लायलपुरी के नाम से जानती है. नक्श एक साल के भी नहीं हुए थे कि उनकी माता जी विद्या पुरी का अकस्मात देहांत हो गया. माता के देहांत के बाद पिता ने दूसरी शादी कर ली. 1947में हुए बंटवारे के समय पूरा परिवार लाहौर से लखनऊ आकर बस गया. पढाई-लिखाई तथा विशेषकर ऊर्दू शायरी में रूचि रखनेवाले नक्श बचपन से ही स्वाभिमानी किस्म के थे. पढाई समाप्त होने के बाद नौकरी न मिलने के कारण जब सौतेली माता ने हर रोज घर में कलह शुरू कर दिया तो उनके स्वाभिमानी मन ने विद्रोह कर दिया. 

सन 1950 में एक रोज किसी को बिना बताए नक्श साहब लखनऊ से बंबई आ गए. एक जोडी कपडे तथा जेब में चवन्नी के साथ मुंबई आनेवाले नक्श जी बताते हैं,  ‘उन दिनों रेलगाडियां कोयले से चला करती थी सो लखनऊ से कल्याण तक आते आते मेरे पूरे कपडे काले हो चुके थे. दोपहर का वक्त था सो भूख भी बहुत तेज लगी हुई थी.जेब में चवन्नी के रूप में यह मेरी आखिरी दौलत मेरे पास थी. एक पल विचार आया क्यों ना इसे बचा कर रख लिया जाए मगर दूसरे ही पल पेट की आग ने इस विचार को पुख्ता कर दिया कि बेगाने देश में भूखे पेट आमद दर्ज करने से कहींऐसे न हो कि कई दिन फांके करने पडे.सो मैंने जेब में पडी चवन्नी की चार पुरियां और भाजी खरीदी. दुर्भाग्य से पहला निवाला उठाते ही चील ने झपट्टा मारकर वह निवाला जमीन पर गिरा दिया.दुखी मन के साथ मैने वह पुरी भाजी वहीं छोड दी और वापस ट्रेन में आकर बैठ गया. जब ट्रेन दादर पहुंची तब ख्याल आया कि यहां मेरे कलम मित्र(पेन फ्रेंड) प्रदीप नैयर रहते है. हम कभी मिले नहीं थे सो उनसे मिलने के लिए मै उनके घर की तरफ चल पडा. उनके घर पहुंचने के बाद पाया वहां बडा सा ताला लटका हुआ है. ताला देखकर मेरा दिल फट पडा. वाचमैन ने बताया वह किसी काम से 15दिनों के लिए पूना गए हैं. यह सुनकर दिल और बैठ गया. बेहद थकान, धूप की तपिश और भूख ने मुझे बेहाल कर दिया था. साथ ही सवाल यह भी था कि अब क्या ? सडक पर चलते हुए यही सवाल  बार-बार दिल से टकरा रहा था कि सामने से मुझे एक 80-90 साल के एक बुजुर्ग सरदार हाथ में छडी लिए आते दिखाई दिए.मैने उन्हें रोककर जब अपनी परेशानी बताई, तो उन्होंने मुझे दादर स्थित गुरुद्वारे का पता बताया और कहा, वहां आठ दिन रहने और खाने की व्यवस्था हो सकती है. आठ दिन सुनकर मै जरा आश्वस्त हुआ और उम्मीद की एक किरण के साथ उनका शुक्रिया अदा कर गुरु द्वारे का पता पूछते पूछते वहां जा पहुंचा. जब मै वहां पहुंचा तब खाने का समय समाप्त हो चुका था और सभी एक बडे से हॉल में आराम कर रहे थे. वहां मेरी मुलाकात एक युवा नौजवान से हुई जिसने बंटवारे में अपना एक पैर खो दिया था. पेशे से वह बिजनेस मैन था और बिजनेस के सिलिसले में लाहौर से बंबई आया हुआ था. जब उसे पता चला कि मै एक शायर हूं तो उसका झुकाव मेरी तरफ अधिक हो गया। मेरी हालत देखकर उसने मुझे अपना तौलिया, साबुन और तेल दिया. इस तरह छ: दिन बीत गए और उसके जाने का दिन आ गया.मेरे लिए समस्या यह थी कि दो दिन बाद मेरी भी आठ दिन की अवधि खत्म होनेवाली थी.मेरी परेशानी देखकर उसने गुरुद्वारे वालों से कहकर मेरे रहने का एक हफ्ता इंतजाम और कर दिया, साथ ही जाते वक्त कुछ पैसे देकर वह चला गया.’

बंबई आने के बाद नक्श जी को पहला काम एक डाकखाने में बतौर क्लर्क की मिली. नौकरी में अरुचि तथा अधिकारियों से अनबन होने के कारण उन्होंने वह नौकरी छोड दी. कला की तरफ रुझान रखनेवाले नक्श जी ने बंबई में भी अपने काफी प्रशंसक बना लिए थे, जिनमें अधिकतर कला में रूचि रखनेवाले बडे घरों के लडके थे. उनकी मदद से नक्श जी ने एक नाटक तैयार किया.  आर्थिक मदद उन लडकों ने दी.  नायक के रूप में उन्होंने  अभिनेता राम मोहन को चुना,  उस समय निर्देशक जगदीश सेठी के साथ बतौर सहयोगी निर्देशक के रूप में कार्यरत थे. नक्श जी बताते है‘ मेरे लिखे नाटक और गीतों से प्रभावित होकर उन्होंने मुझे फिल्मों के लिए गीत लिखने का सुझाव दिया. मगर उन दिनों फिल्मों के बारे में मेरी राय अच्छी नहीं थी. मुझे लगता था फिल्मी दुनिया में नए लोगों के साथ बहुत बद्सलूकी की जाती है. जब मैने उन्हें अपने दिल की बात बताई तो वह हंसने लगे और कहा कि यदि आपको इज्जत से काम मिले तब तो आपको कोई परेशानी नहीं होगी. उनकी बात सुनकर मैने कहा बिल्कुल नहीं. जहां इज्जत और पैसा दोनों मिले वहां काम करने में कैसी हिचक. मेरी बात सुनकर उन्होंने मेरी मुलाकात जगदीश सेठी से करवाई. तब वह अपनी फिल्म जग्गू की तैयारियों में व्यस्त थे. गीत लिखने के लिए उन्होंने सात गीतकार नियुक्त कर रखे थे.शर्त यह थी कि जिसका गीत अच्छा होगा उसे चुना जाएगा. इस तरह आठवें गीतकार के रूप में उनके यहां मुझे भी मौका मिल गया. उनकी खासियत यह थी कि वहां लिखने के लिए सभी गीतकारों को समान रूप से पैसे मिलते थे. बीस दिन बाद आखिरकार वह भी दिन आ गया जब दो गीतों को चुना गया. उसमें से एक गीत मेरा था और दूसरा गीत उस जमाने के मशहूर गीतकार मुजफ्फर शाहजहांपुरी का. उन दोनों गीतों में से एक गीत का चुनाव होना था. गीत दोनों ही अच्छे थे सो मतदान के जरिए चुनाव तय हुआ। चुनाव की बात सुनकर मेरा दिल बैठ गया मुझे लगा अब तो कुछ नहीं हो सकता क्योंकि मुझे कौन जानता है जो मेरे लिए मतदान करेगा.मगर इत्तेफाक से मुझे उनसे एक मत अधिक मिले और मेरा गीत चुन लिया गया. इस तरह 1952में फिल्म ‘जग्गू से मैने फिल्मी दुनिया में प्रवेश किया.' 

नक्श जी इस बात को भी मानते है कि इस इंडस्ट्री में अपने पैर जमाने के लिए दूसरों की तरह उन्हें ज्यादा संघर्ष नहीं करना पडा. नक्श जी के अनुसार उन्हें यकीन था कि जिस तरह उन्हें प्रवेश मिला है, उसी तरह एक दिन वह बुलंदियों को भी छू लेंगे.नक्श जी बताते ह कि आज की तरह वह दौर भी मार्केटिंग का दौर था, जहां खुद को बेचना एक कला समझी जाती थी. मगर नक्श जी कभी इस दौड में नहीं शामिल हुए. 1952से लेकर आज तक काम मांगने के लिए वह किसी संगीतकार के पास नहीं गए. हालांकि नक्श जी यह भी मानते है कि यही वजह है जो उन्हें कोई बडी फिल्म नहीं मिल पाई. 

  गीतकार की जिन्दगी, आजाद जिन्दगी नहीं होती. हर गीत अच्छी धुनों, अच्छे गायक, सफल फिल्म और एक अच्छे चेहरे की मोहताज होती है, जिस पर यह गीत फिल्माया जाए. इन सबको मिलाकर ही एक कामयाब गीत बनता है 

वैसे नक्श जी भले ही यह कहें कि उन्हें कोई बडी फिल्म नहीं मिल पाई मगर इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि वह संगीत प्रेमियों के पसंदीदा गीतकारों में से एक है.लेकिन इसका श्रेय भी नक्श जी खुद को ना देते हुए आकाशवाणी के उद्घोषकों को देते हैं जिन्होंने उनके गाने खूब बजाए. उस वक्त पैसे लेकर गाने बजाने का चलन था मगर पैसे देकर अपनी वाहवाही नक्श जी को मंजूर ना थी.बतौर गीतकार नक्श जी की लोकप्रियता किसी से छुपी नहीं है मगर यह सवाल भी स्वाभाविक है कि आखिर किस गायक और संगीतकार ने उनके गीतों के साथ न्याय किया ? इस सवाल के जवाब में नक्श जी मुस्कुराते हुए कहते है कि गीतकार की जिन्दगी, आजाद जिन्दगी नहीं होती. हर गीत अच्छी धुनों, अच्छे गायक, सफल फिल्म और एक अच्छे चेहरे की मोहताज होती है, जिस पर यह गीत फिल्माया जाए. इन सबको मिलाकर ही एक कामयाब गीत बनता है।’ वैसे नक्श जी के अनुसार गीत सिर्फ दो तरह के होते हैं, एक अच्छा गीत और दूसरा बुरा गीत. इस सिलिसले में नक्श जी एक गीत उदाहरण देते है जिसे पूरा करने के लिए उन्हें 4काफिये की बजाय 52काफिये लिखने पड़े   गीत के बोल थे - 

मजबूर है हम, तकदीर का गम, हर हाल में सहना पडता है।
शकवे भी जुबां पर आते है खामोश भी रहना पडता है।

नक्श जी बताते है ‘जब 52 काफिया लिखने के बावजूद यह गीत नहीं चुना गया, तो मैने इस गीत के संगीतकार गुलशन सूफी से इसका कारण पूछा.उन्होंने मुझे बताया कि आपके सभी शेर अच्छे है मगर मेरे धुनों में वह जम नहीं पा रहे है. मुझे गीत में जो कट चाहिए, वह कट आपकी शायरी में नहीं आ रही है. उनकी बातों को गौर करके मैने घर जाकर रात को एक शेर और लिखा, जो उन्हें खूब भाया. वह इस प्रकार है - 
ऐ शोख सितारे झूम नहीं, अफसोस तुझे मालूम नहीं,
ऐसी भी घडी आ जाती है, जब चांद को गहना पडता है.
(इस गीत में गहना का अर्थ ग्रहण से है) 

नक्श जी के अनुसार इस गीत को लिखने वक्त जितनी मुश्किलात आई, उतना ही सुकून इसके लोकिप्रय होने पर मिला।’  इसके अलावा  बप्पी लाहिरी का एक गीत  लिखने में उन्हें काफी मशक्कत करनी पडी। नक्श जी बताते है, संगीतकार बप्पी लाहिरी एक ऐसा गीत चाहते थे जो भजन की शक्ल में हो और उसमें भाई का डूबकर मरना, बहन का बलात्कार और बरसात, तीनों चीजें समाहित हों. इस भजन को लिखने की जिम्मेदारी पहले उन्होंने किसी और को दी थी मगर एक महीने तक जब वह गीत नहीं लिख पाया तो वह गीत मेरे पास आ गया खैर,फिल्म तो साइन कर ली मगर अगले पल लगा कि यह फिल्म साइन करके मैने मुसीबत मोल ले ली- आखिरकार इन सभी चीजों को आपस में मिलाते हुए मैने एक भजन रूपी गीत की रचना की, जो इस प्रकार है - पाप का सावन घिर आया, पाप के बादल छाए/ राम ही जानें आज की बरखा कहां अगन बरसाए. 
इस गीत को मैने तरकीब से बनाई थी मगर आज भी मै इस गीत से खुश नहीं हूं।’

नक्श जी बताते है कि आज की तरह यह जरूरी नहीं था कि पहले धुन बनें उसके बाद गीत लिखे जाएं उस दौर के संगीतकार गीतों के अनुसार गीत और धुन बनाते थे,  जिस नृत्य पर आधारित गीत में संगीत मुख्य भूमिका निभाता है.सो उसका संगीत पहले तैयार किया जाता था क्योंकि उसमें हल्के फुल्के बोल भी चल जाते थे.

1952 से लेकर अब तक अनगिनत गीत लिख चुके नक्श जी अपने प्रोफेशन को प्रोफेशन नहीं मानते.उनके लिए यह कला है,  उन्हें सुकून देती है. साथ ही उन्हें इस बात की खुशी और तसल्ली है कि बुरा गीत ना लिखने का उनका फैसला आज तक कायम है. वैसे इस लिहाज से नक्श जी ने कई दौर देखे. पुराने लोगों के साथ साथ नए लोगों के लिए शब्द रचना कर चुके नक्श जी अपना अधिक जुडाव पुराने लोगों से मानते है.  उनके अनुसार आज के संगीतकारों के पास अधूरी शिक्षा है. पहले के संगीतकार पूरी तरह से राग विद्या में प्रशिक्षित होकर आते थे. उन्हें शास्त्रीय संगीत की सारी किस्में पता थी.इसके अलावा शायरी के लिए भी उनके पास कान थे जो आज के संगीतकारों में नदारद है. यही नहीं इन दिनों टेलीविजन में अपना खास मुकाम बनाए रिएलिटी शो में भी उनकी कोई आस्था नहीं है, विशेष रूप से उसमें नजर आनेवाले जजों पर.

यूं तो नक्श जी ने जयदेव, खैय्याम, मदन मोहन और रोशन, इन सभी के साथ खूब काम किया,  मगर विशेष रूप से वह मदन मोहन से काफी प्रभावित हैं. उनका कहना है कि मदन मोहन जी का जजमेंट काफी अच्छा था. सुरों के साथ गीत की भी उन्हें अच्छी परख थी। एक बार मैने उन्हें एक गीत लिखकर दिया, 

आपकी बातें करें या अपना अफसाना कहें,
होश में दोनों नहीं हैं, किसको दीवाना कहें.

इस गीत को सुनकर वह खुशी से उछल पडे और मुझे गले लगाते हुए कहा कि यह तो लाजवाब मुखडा है. इसे हम चाहें तो कव्वाली बना लें, गीत बना लें या फिर गजल बना लें. गायकी की हर विधा में यह बेजोड है.’ यदि आज के गीतों की बात करें तो आज के गीतों से नक्श जी को कोई परहेज नहीं है मगर उनका मानना है कि आज के गीतों में गहराई नहीं है और उसकी वजह है गीतकारों और संगीतकारों की निष्ठा में कमी. नक्श जी बताते है कि पहले कुछ फिल्म कंपनियां थी जैसे पूना में शालिमार फिल्म कंपनी और मुंबई में फजली ब्रदर्स, इनके निर्माता - निर्देशक काफी पढे लिखे और साहित्यिक किस्म के इंसान थे. अपनी फिल्मों के लिए उन्होंने बडे बडे और नामी शायर जैसे जोश मलिदाबादी और मजरूह सुल्तानपुरी को रखा था. उनके पास अच्छी जुबान के साथ अच्छी सोच भी थी, मगर आज के बारे में क्या कहें,उनकेबारे में कुछ ना कहना ही बेहतर है. इसके अलावा प्रेरणा के नाम पर गीत - संगीत की हो रही चोरी से उन्हें बेहद नफरत है. 

कुछ सालों तक छोटे परदे के सीरियलों के लिए गीत लिखने वाले नक्श जी फिलहाल मुंबई के ओशिवारा स्थित अपने आवास में गुमनाम सी जिंदगी जी रहे हैं लेकिन उन्हें किसी से शिकायत नही हैं.  वह बॉलीवुड की इस अदा से भी अच्छी तरह वाकिफ है कि यहां नमस्कार सिर्फ उगते सूरज को किया जाता है, डूबते सूरज को नहीं. नक्श जी कहते हैं कि यहां क्या हर जगह का यही आलम है. उदाहरण के तौर पर रेसकोर्स में जैकपॉट एक आदमी का लगता है और हारकर हजारों निकलते है मगर हारनेवालों के बारे में कोई नहीं सोचता, सभी की नजर सिर्फ जैकपॉट वाले पर होती है.इतनी आसानी से जिंदगी का फलसफा बयां करनेवाले नक्श जी ने सफलता और असफलता के कई पायदानों  को छुआ है मगर आज भी पुरस्कार उनके लिए कोई खास मायने नहीं रखते. उनका मानना है कि पुरस्कार कलाकारों की हौसला अफजाई के लिए होते है.सो यदि पुरस्कार योग्यता के आधार पर तय हो तो अच्छी बात है मगर दुखद बात यह है कि हमेशा से पुरस्कार बिकते आए हैं.
                                                                                        
नक्श जी आज फ़िल्मी दुनिया की चमक दमक से दूर हैं.  रेडियो पर जब उनका लिखा कोई पुराना नगमा बज उठता है तब वे शायद अपना ही एक शेर दुहराते हैं..

मैं दुनिया की हक़ीकत जानता हूँ
किसे मिलती है शोहरत जानता हूँ

मेरी पहचान है शेरो सुख़न से
मैं अपनी कद्रो-क़ीमत जानता हूँ ..

                                                                             उर्मिला कोरी युवा फिल्म रिपोर्टर हैं. 




4 comments:

  1. उर्मिल जी ने यशस्वी गीतकार नक्श लायलपुरी जी के बारे में बहुत सुंदर लिखा है ,उनके गीत शायरी मन को छू जाती है आज के गीत मे शब्द हैं भाव नदारद हैं जब तक शब्द भाव का अभाव होगा गीत मन को स्पर्श कैसे करेगा ।नक्श लायलपुरी जी को सादर नमन।

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  2. उर्मिल जी ने यशस्वी गीतकार नक्श लायलपुरी जी के बारे में बहुत सुंदर लिखा है ,उनके गीत शायरी मन को छू जाती है आज के गीत मे शब्द हैं भाव नदारद हैं जब तक शब्द भाव का अभाव होगा गीत मन को स्पर्श कैसे करेगा ।नक्श लायलपुरी जी को सादर नमन।

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  3. उर्मिल जी ने यशस्वी गीतकार नक्श लायलपुरी जी के बारे में बहुत सुंदर लिखा है ,उनके गीत शायरी मन को छू जाती है आज के गीत मे शब्द हैं भाव नदारद हैं जब तक शब्द भाव का अभाव होगा गीत मन को स्पर्श कैसे करेगा ।नक्श लायलपुरी जी को सादर नमन।

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  4. उर्मिल जी ने यशस्वी गीतकार नक्श लायलपुरी जी के बारे में बहुत सुंदर लिखा है ,उनके गीत शायरी मन को छू जाती है आज के गीत मे शब्द हैं भाव नदारद हैं जब तक शब्द भाव का अभाव होगा गीत मन को स्पर्श कैसे करेगा ।नक्श लायलपुरी जी को सादर नमन।

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