2 September 2009

छात्र संघ चुनाव :.डी यू चला जे एन यू की राह!!









मुझे याद है ,वो 1998 का अगस्त का महीना ...दिल्ली विश्वविद्यालय पूरी तरह चुनाव के रंग में रंग चुका था..हवाओं में कुछ ऐसा था कि वह पहचानी हुई -सी नहीं लगती थी..हवा के हर कण पर जैसे बैलेट नंबर , पार्टियों के नाम ,उम्मीदवारों के नाम आकर अटक  गए थे और हमारे चारों तरफ डोल रहे थे..हवा में पर्चे  उड़ते ..और जोर का शोर गूंजता--" बैलेट नंबर क्या है 5 है 5 है.."...."आई आई एन एस यू आई....... ".हॉस्टल में रहने वाले हम जैसे छात्रों  के लिए तो चुनाव प्रचार असल में शाम के 7 बजे से शुरू होता और आधी रात तक चलता रहता..कभी कभी  पूरी रात तक भी .एक याद जो हमेशा जेहन में ताजा रह गई वह है किसी दल के  कैंडीडेट की दी हुई कोल्ड ड्रिंक की पार्टी..यह इस तरह की मेरी पहली पार्टी,या कहें मुफ्तखोरी  थी .बाद में पता चला कि ये पुराना दस्तूर था..कोल्ड ड्रिंक ही क्या, वे शराब और कबाब  से भी खिदमत करने को तैयार रहते ... खुद अपनी,और अपने गुर्गों की  खिदमत तो  वे ऐसे करते ही थे..दस -बारह दिनों तक काफी गहमा-गहमी रहती..पर्चे.. पैम्फलेट  ..बैनर ,टी- शर्ट ,डायरी ,और भी बहुत सारे चीजें बांटी जातीं ..लड़कों के लिए कैंटीन फ्री कर दिया जाता..जितना खाना है खाओ,मजे करो..लेकिन वोट दे दो.." नोट लो और वोट दो" का खेल भी चलता ..वैसे लड़के अमूमन ऐसे candidate को वोट नहीं देते..कहते हैं कि उत्तर प्रदेश के विश्वविद्यालयों में चुनावों में गन-तंत्र चलता है  और डी यू में धन-तंत्र ...बात सोलह आने सच हो या ना हो ,आठ आने तो सही है ही.. यहाँ पूरे आठ आने डी यू के ही.(यू-पी वाले 8 आने  का फैसला मैं नहीं करना चाहता..).खूब पैसा.. खूब -खूब पैसा खर्च किया जाता..
       चुनावों के दौरान होता तो बहुत कुछ लेकिन यहाँ सब कुछ बता पाना संभव नहीं..कई साल हो गए डूसू चुनावों के समय विश्वविद्यालय नहीं गया था..इस बार जा रहा हु..फिजा काफी बदली बदली है.. पोस्टर गायब हैं ,डायरियां नहीं बँट रही, टी शर्ट पहन कर बस स्टाप पर आपसे वोट नहीं मांगे जा रहे.शराब और कबाब  का दौर , चल रहा   है या नहीं..ये फिलहाल पता  लगाने  का कोई साधन नहीं..क्यूकि मैं बाहर बाहर से ही सब कुछ देख रहा हूँ, एक outsider की तरह    ..हाँ बाहर से जो देख रहा हु..वो  अभी भले थोडा कम चमकीला..फीका फीका लगे ..लेकिन यह एक सुखद परिवर्तन है..हाथ से लिखे पोस्टर दीवारों पर टंगे हैं..भले ही कम मात्रा   में..जे एन यू जैसा पोस्टर कल्चर यहाँ विकसित होते होते जरूर बहुत समय लगेगा..लेकिन मजबूरन ही इस बार इसकी शुरुआत हो गयी है..शुरुआत नहीं होती अगर कुछ उम्मीदवारों की उम्मीदवारी रद्द नहीं की जाती .... वैसे अभी भी डीयू की "वाल ऑफ डेमोक्रेसी" खाली है..और वहाँ जे एन यू  मार्का पोस्टरबाजी नहीं दिख रही है..जिसे मैं राजनीतिक चेतना की कलात्मक अभिव्यक्ति मानता हूँ..हाँ ऐसा जरूर लग रहा है कि  मौहाल बदलेगा..डीयू  में भी राजनीति ,जल्दी ही रचनात्मक और कलात्मक मोड़ लेगी .. 


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3 comments:

  1. very real description..only you could write this...

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  2. अरे आपने तो हमें भी अपने कालेज के दिनों की याद दिला दी...

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  3. Meri samajh se chhatra sangh chunaaon ko band hi kar dena chahiye.
    ( Treasurer-S. T. )

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