25 February 2013

मेरे पांव पूरी तरह जमीन पर हैं : मो यान





वर्ष 2012 का साहित्य का नोबेल पुरस्कार चीनी भाषा के लेखक मो यान को दिया गया . यान के लेखन में फ्रांज काफ्का के मनोविश्लेषण, माक्र्वेज के जादुई यथार्थवाद और फाकनर की पैनी नजर का सम्मिश्रण देखा जा सकता है. वे अपनी रचनाओं में कल्पना, यथार्थ और इतिहास और समाजिक संदर्भों को पिरोते हुए बीते कल के साथ वर्तमान से भी मुठभेड़ करते हैं. मो यान के लेखन को उन्हीं के शब्दों के सहारे समेटता हुआ एक पुराना लेख… 

नोबेल पुरस्कार मिलने की खबर पाकर मुझे हैरानी भरी खुशी के साथ-साथ थोड़ा भय भी हुआ. हैरानी इसलिए, क्योंकि मुझे इस बात की थोड़ी सी भी उम्मीद नहीं थी कि मैं यह पुरस्कार जीतूंगा. खुश पुरस्कार मिलने के कारण था. भयभीत इसलिए, क्योंकि मुझे अब तक नहीं पता कि आखिर मैं इसका सामना किस तरह से करूं. इसका कारण मुझमें प्रेस की अचानक बढ़ गयी रुचि भी है. सबसे बड़ी बात, मैं नहीं जानता कि नोबेल पुरस्कार जीतने के बाद क्या लोग मुझे ज्यादा गौर से देखेंगे और और मेरी कमियां ढूंढ़ेंगे!
दुनियाभर में और चीन में भी कई बेहतरीन लेखक हैं. मुझे मालूम है कि मेरे पुरस्कार जीत लेने का यह मतलब नहीं है कि मैं सर्वश्रेष्ठ हूं. मेरे पांव पूरी तरह से जमीन पर हैं, और मुझे उम्मीद है कि साक्षात्कार और मीडिया के अटेंशन का दौर जल्द ही समाप्त हो जायेगा, जिससे कि मैं अपने काम में फिर से लग पाऊंगा. एक लेखक के लिए सबसे जरूरी चीज उसका काम, वास्तविक जीवन को गौर से देखना और अपने देश के लिए प्रेम है. मुझे लगता है कि इसी वजह से मुझे पुरस्कार दिया गया है, क्योंकि मैं लोगों के बारे में एक मानवीय और संवेदना भरे दृष्टिकोण से लिखता हूं. इस बात की ज्यादा परवाह किये बगैर कि मैं जिन पर लिख रहा हूं, वे अच्छे हैं या खराब.
नोबेल पुरस्कार समीति ने मेरे लेखन को हैलुशिनेटरी रियलिज्म (आत्म भ्रम से परिपूर्ण यथार्थ) की संज्ञा दी है. यह मेरे लेखन की अच्छी व्याख्या है. 1987 में मैंने एक लेख लिखा था. इसमें मैंने चीनी लेखकों और विलियम फाकनर और ग्रैबियल गार्सिया माक्र्वेज के बीच के संबंध की चर्चा की थी. इन दोनों महान फनकारों का मेरे ऊपर बहुत बड़ा प्रभाव रहा है.

इन लोगों के लेखन को पढ़ने के बाद ही मैं यह समझ पाया कि साहित्य इस तरह भी लिखा जा सकता है. ये दोनों लेखक लगातार धधकते हुए ज्वालामुखी के समान हैं. आप उनके बहुत नजदीक नहीं जा सकते. आप पिघल जायेंगे. मेरे लिए यह जरूरी है कि मैं उनसे दूर जाऊं, ऐसा करके ही मैं अपने आपको खोने से बचा सकता हूं. वैसे मुझे नहीं लगता कि नोबेल समिति का यह कहना पूरी तरह सही है कि मैंने हैलुशिनेटरी यथार्थ, दंत कथाओं, इतिहास और वर्तमान का संलयन किया है. बल्कि इसकी जगह मैं कहूंगा कि मेरे उपन्यासों में कल्पना, लोक कथाओं, सामाजिक समस्याओं और ऐतिहासिक घटनाओं का समावेश है. हालांकि मुझे लगता है कि उन्होंने मेरे उपन्यासों को समझा है.
यह पुरस्कार मुझे मिला होता, या न मिला होता, मैं यह कहना चाहूंगा कि मेरे अंदर अपनी मातृभूमि और अपने देश के लोगों के प्रति गहरा लगाव है. मैं इस बात के लिए शुक्रगुजार हूं कि मैं यहां बड़ा हुआ और मेरे खाते में जीवन के ये अनुभव आये. मेरे कई शुरुआती कामों की पृष्ठभूमि मेरे इर्द-गिर्द का परिवेश है. मेरी किताबों के कई पात्र उन लोगों से प्रभावित हैं, जिनके साथ मैं बड़ा हुआ. इस धरती और यहां के लोगों के बगैर मैं वह नहीं हो पाता, जो मैं आज हूं.
जब मैंने पहले-पहल लिखना शुरू किया, उस समय एक वातावरण मेरे चारों और मौजूद था. यह काफी वास्तविक था और जो कहानियां मैंने लिखीं, वे मेरे व्यक्तिगत अनुभव थे. लेकिन जैसे-जैसे मैं लगातार लिखता जा रहा हूं और मेरा लिखा प्रकाशित होता जा रहा है, मेरे दिन प्रति दिन के अनुभवों का भंडार खत्म होता जा रहा है, इसलिए मुझे अपने लेखन में थोड़ी सी कल्पना की मिलावट की जरूरत महसूस होती है. कई बार इसमें कुछ फंतासी भी होता है.
मैंने हमेशा बड़ों के मुंह से कहानियां सुनीं. इसमें परीकथाएं भी थीं, दंत कथाएं भी थीं. इतिहास और हमारे क्षेत्र में हुई स्थानीय लड़ाइयां भी थीं. किंवदंती बन चुके लोगों के किस्से भी थे. आपदाओं की कहानियां भी थीं. ये मेरे लेखन का स्नेत हैं. मैं इन सबका इस्तेमाल अपने उपन्यासों में करता हूं. गांव में बिताया हुआ मेरा जीवन मेरे लिए एक निधि के समान है.

अगर आप लेखक नहीं हैं, तो शायद आपको यह निधि काम की न लगे. लेकिन, मेरे जैसे लेखक के लिए यह बेहद बेशकीमती और महत्वपूर्ण है. यही वह कारण है कि मेरे उपन्यास अलग तरह के हैं. अगर मैं क्लासिक उपन्यास पढ़ते हुए बड़ा हुआ होता, तो मैं मो यान नहीं बन पाया होता.
मैं अपने उपन्यासों की बिक्री बढ़ने की खबर से घबरा जाता हूं. उनकी बिक्री जितनी ज्यादा बढ़ती है, मेरा डर भी उतना ही बढ़ता है. कई पाठक यह धारणा बना लेंगे कि नोबेल पुरस्कार पाने वाले का लेखन जरूर सर्वश्रेष्ठ का भी सर्वश्रेष्ठ होगा. मुझे डर है कि उन्हें मेरे लेखन से निराशा हो सकती है.
मैंने पहली बार 1981 में लिखना शुरू किया. उस समय तक मैंने माक्र्वेज या फाकनर को नहीं पढ़ा था. मैंने पहली बार इन्हें 1984 में पढ़ा. और इसमें कोई शक नहीं कि उनका मेरे लेखन पर गहरा असर रहा है. मैंने यह महसूस किया कि मेरे अनुभव उनके अनुभव से काफी मिलते जुलते हैं. लेकिन यह महसूस करने में काफी वक्त लगा. अगर मैंने उन्हें पहले पढ़ा होता, मैं शायद उनके जैसे किसी मास्टरपीस का अब तक सृजन कर पाता.

मैंने अपनी शुरुआती रचनाओं में काफी मात्र में स्थानीय बोली के शब्द, उसके मुहावरे और अलंकार का इस्तेमाल किया है. इसका कारण यह भी है कि मेरे भीतर कभी इस बात का ख्याल भी नहीं आया था कि मेरी रचनाओं का दूसरी भाषाओं में कभी अनुवाद भी होगा. बाद में मैंने महसूस किया कि इस तरह की भाषा अनुवादक के लिए कई मुश्किलें खड़ी करती है. लेकिन बोलियों और मुहावरों का इस्तेमाल न करना मेरे लिए मुमकिन नहीं है. क्योंकि मुहावरों वाली भाषा गहन ऊर्जा से भरी और अभिव्यक्तिपूर्ण होती है.

और यह किसी खास लेखक की पहचान माने जाने वाली भाषा का सर्वोत्कृष्ठ हिस्सा होता है. इसलिए एक तरफ मैं कुछ प्रयोगों को बदलने की कोशिश करता हूं, लेकिन वहीं अपने अनुवादक से यह उम्मीद भी करता हूं कि वे मुहावरों को सही तरीके से ध्वनित करें. मेरे ख्याल से यह आदर्श स्थिति है.
यह सुनिश्चित करने का कोई तरीका नहीं है कि मैं अपनी भाषा में जिस तरह से पाठकों तक कोई विचार पहुंचाने की कोशिश करूं, वह दूसरों तक भी वैसे ही पहुंचे. वैसे मैं मानता हूं कि दुनियाभर में हर जगह पाठक एक जैसे होते हैं. हर जगह ऐसे लोग होंगे जिन्हें मेरा काम पसंद आता होगा, कुछ ऐसे भी होंगे जिन्हें मेरा लिखा बिल्कुल पसंद नहीं आता होगा. मैं उन्हें ऐसा करने या न करने के लिए उन पर दबाव नहीं बना सकता. इसलिए हकीकत यही है कि हर लेखक अपने लिए खास तरह का पाठक चुनता है.

मुझे लगता है कि सीमाएं और सेंसरशिप साहित्य सृजन के लिए बेहतर ही हैं. दरअसल, साहित्य में तमाम पद्धतियों का अपना राजनीतिक आचरण होता है. जैसे कि हमारे वास्तविक जीवन में कुछ तीखे और संवेदनशील मुद्दे हो सकते हैं और उन्हें छुए जाने की अपेक्षा नहीं होती. ऐसे में लेखक उन्हें जीवंत, निर्भीक और वास्तविक पहचान के साथ लेकिन कल्पना का इस्तेमाल कर लिखता है.
(ग्रांटा और अन्य पत्र-पत्रिकाओं को दिये गये साक्षात्कार के आधार पर तैयार)

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