हालांकि साहित्य को पीढ़ियों में बांटना महज एक सुविधाजनक विभाजन ही माना जा सकता है, फिर भी हमने साहित्य के युवा मन की पड.ताल करने के लिए, उसमें बसनेवाली साहित्य और समाज की तसवीर को समझने के लिए मौजूदा दौर के कुछ महत्वपूर्ण रचनाकारों का चयन किया और उनसे चंद सवाल पूछे. यहां पीढ़ियों का वर्गीकरण कठोर नहीं है और कम से कम दो पीढ़ियों तथा अलग-अलग क्षेत्रों की आवाजों को शामिल किया गया है. रचनाकारों का चयन भी किसी भी तरह प्राप्रतिनिधिक नहीं है. इस परिचर्चा में जैसी उम्मीद थी, विचारों के अलग-अलग क्षितिज हमारे सामने उभर कर आये, जो साहित्य के विविधतापूर्ण लोकतंत्र में झांकने का मौका देते हैं.
1. मैं क्यों लिखता हूं ? 2. आपकी नजर में साहित्य की जिंदगी में क्या भूमिका है ? 3. किन पुराने लेखकों को आज के समय के करीब पाते हैं ? 4. क्या कालजयी होने की इच्छा आपको भी छू गयी है ? 5. आज के दौर के किस युवा लेखक की रचनाएं आपको प्रभावित करती हैं और क्यों ?
पांच लेखक : मनीषा कुलश्रेष्ठ, अनुज लुगुन, पंकज मित्र, पंकज सुबीर और उमाशंकर चौधरी
पांच सवाल
पांच सवाल
1. मैं क्यों लिखता हूं ? 2. आपकी नजर में साहित्य की जिंदगी में क्या भूमिका है ? 3. किन पुराने लेखकों को आज के समय के करीब पाते हैं ? 4. क्या कालजयी होने की इच्छा आपको भी छू गयी है ? 5. आज के दौर के किस युवा लेखक की रचनाएं आपको प्रभावित करती हैं और क्यों ?
3. पंकज सुबीर
ये वो सहर तो नहीं’ उपन्यास और ‘महुआ घटवारिन’ कहानी संग्रह के लेखक . ज्ञानपीठ का नवलेखन पुरस्कार मिल चुका है. युवा लेखकों की नयी पीढी में अपनी खास जगह बनायी है.
मैं क्यों लिखता हूं? यह एक मुश्किल प्रश्न है. फिर भी ऐसा लगता है कि किसी विषय का लगातार दबाव लिखने पर बाध्य कर देता है. कोई विषय अपने आप को लिखा ले जाने के लिये इस प्रकार से मजबूर कर देता है कि अंतत: लिखना ही पड.ता है.
अपनी जिंदगी में यदि देखता हूं, तो पाता हूं कि साहित्य की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है. यही दूसरों के लिये भी सोचता हूं. महत्वपूर्ण इसलिये कि साहित्य ने विचार के स्तर पर अपने आप को विकसित करने में बहुत मदद की. एक अलग दृष्टि दी, ताकि दुनिया को एक भित्र नजरिये से देख सकूं. दूसरा नजरिया, जो उस नजरिये से सर्वथा अलग हो, जो परंपरागत है. एक अलग तरह की नजर जो अच्छे और बुरे को अपनी तरह से परिभाषित करे, न कि पूर्व की गढ.ी हुई सामाजिक परिभाषाओं की रोशनी में.
पुराने लेखकों की यदि बात करूं तो, दो नाम हर समय अपने बहुत करीब लगते हैं. फणीश्वर नाथ रेणु और इस्मत चुगताई. ये दोनों अपनी विशिष्ट शैली के चलते सर्वकालिक पसंदीदा नाम रहे हैं.
समय की अपनी गति होती है. उस गति के चलते सब कुछ पुराना होता है. लेकिन कुछ ऐसा होता है, जो उस गति को मात देकर जिंदा रहता है. ऐसे में कालजयी होने की तो नहीं, लेकिन बस ये इच्छा है कि जो कहानियां लिख रहा हूं, वो इस तेजी से बदलते समय में कंटेंट के स्तर पर अपने आप को बचा कर रख सकें. उनके साथ ‘पुराने टाइप की कहानी है’, जैसा जुमला लगाने में कुछ परेशानी आये.
कई युवा हैं, जिनकी रचनाएं खूब प्रभावित करती हैं. कहानी में विमल पांडे हैं, मनीषा कुलश्रेष्ठ हैं, गीताश्री हैं, भालचंद्र जोशी हैं, जो प्रभावित करते हैं. क्यों प्रभावित करते हैं? क्योंकि इनकी कहानियों में ताम-झाम कम होते हैं. विषय को लेकर एक प्रकार की सजगता दिखायी देती है. बहुत उलझाने वाली भाषा और शैली नहीं होती. और सबसे बड.ी बात ये कि ये नयी खिड.कियां खोलते हैं. नयी जमीन तोड.ते हैं.
No comments:
Post a Comment