एक अंतहीन सूची है..शब्दों की. शब्दों से आकार लेती कहानियों की. हर बार नयी कहानी. हर पाठ में कहानी नया अर्थ ले ले. कभी वह मेरे गाँव के मेरे परिचित के शक्ल में मेरे सामने हाजिर हो जाये..कभी मेरा चेहरा ही उस चेहरे में मिल जाए. कभी कोने पर सब्जी बेचने वाले कि शक्ल की रेखाएं उसके चेहरे के भाव को प्रकट करने लगे तो कभी इतिहास का कोई टुकडा कहानी के टुकड़े में विन्यस्त हो जाए..कल्पना की उड़ान या अपने समय की पहचान ..कुछ भी कहें..लेकिन जो बार बार आपको अपने पास बुलाये...वो आपको ऊंचे आकाश पर भी ले जाए और अपने भीतर झाँकने की निर्मम चुनौती भी छोड़ जाए.
उसकी कहानिया समय की हर नामालूम सी लकीर पर भटकती हुई कहानी है..उस लकीर को मिटने से बचाने की विकलता से उपजी कहानी है. अंतिम आदमी की कहानी. हाशिये को क्रेंद्र में लाने की बेचैनी से भरी कहानी. हर शब्द के अनेक रूप बनाये हैं हमने....समय के बीहड़ में रौशनी सी उसकी कहानी मुझे गुडगाँव और मुंबई के चमकते माल में अँधेरे की ओर देख सकने लायक मानवीय बनाती हैं...
उदय जी को मैं सर्वश्रेष्ट कहानीकार नहीं कहता. प्रिय रचनाकार जरूर कहता हूँ. जिसकी कहानिया विशिष्ट हैं. मेरे अन्दर चेतना की कुछ रेखाएं खीचने में जिसने भूमिका निभायी है. जिसने मुझे थोडा बदला है...मेटामोर्फोसिस की प्रक्रिया के लिए जरूरी कुछ आंच थोडा दबाव उनकी कहानियों से भी मिला है.
उदय जी को पुरस्कार उनके लेखन को देर आये दुरुस्त आये कि तर्ज पर दिया गया है..जहाँ अकादमी ने खुद को दुरुस्त किया है...पिछले कुछ वर्षों में अकादमी यही कर रही है...मनोहर श्याम जोशी और कमलेश्वर के बाद उदय प्रकाश को पुरस्कार दिया जाना इसी अकादमी वाली परंपरा का हिस्सा है. वैसे यह सब लिखते हुए मैं गहरे आशंका से घिर गया हूँ...वह आशंका जिसका जिक्र उदय प्रकाश बार बार करते हैं...साहित्यिक गठजोड़-गिरोहबंदी पर यू तो उदय जी ने बहुत कुछ बहुत बार लिखा है...और फिलहाल ट्रेन में होने के कारण मैं उनके लिखे को प्रमाणिक रूप से उधृत नहीं कर सकता इसलिए कुछ दिन पहले उनके ब्लॉग पर पढ़े ये शब्द यहाँ दर्ज कर रहा हूँ- रामविलास शर्मा को याद करते हुए उन्होंने लिखा था..
उदय जी को पुरस्कार उनके लेखन को देर आये दुरुस्त आये कि तर्ज पर दिया गया है..जहाँ अकादमी ने खुद को दुरुस्त किया है...पिछले कुछ वर्षों में अकादमी यही कर रही है...मनोहर श्याम जोशी और कमलेश्वर के बाद उदय प्रकाश को पुरस्कार दिया जाना इसी अकादमी वाली परंपरा का हिस्सा है. वैसे यह सब लिखते हुए मैं गहरे आशंका से घिर गया हूँ...वह आशंका जिसका जिक्र उदय प्रकाश बार बार करते हैं...साहित्यिक गठजोड़-गिरोहबंदी पर यू तो उदय जी ने बहुत कुछ बहुत बार लिखा है...और फिलहाल ट्रेन में होने के कारण मैं उनके लिखे को प्रमाणिक रूप से उधृत नहीं कर सकता इसलिए कुछ दिन पहले उनके ब्लॉग पर पढ़े ये शब्द यहाँ दर्ज कर रहा हूँ- रामविलास शर्मा को याद करते हुए उन्होंने लिखा था..
'पिछले कुछ अरसे से, जब से पुरस्कारों की लूट-खसोट और उन पर अखबारबाजी साहित्य के हलके से आने वाली अकेली सूचनाएं बन चुकी हैं, ऐसे में रामबिलास जी फिर से याद आते हैं। सैमसुंग टैगोर, साहित्य अकादेमी या हिंदी अकादेमी पुरस्कार को लेने वाले और न लेने वाले ‘नायक-नायिकाओं’ की परस्पर बयानबाजियों से भरी इन तारीखों में वह लगातार चुप रहने वाला धीरोदात्त, स्थावर लेखक बार-बार याद आता है, '
मैं उदय जी को पुरस्कार दिए जाने पर कतई खुश नहीं होना चाहता हूँ. क्यूकि उदय जी ने पुरस्कारों पर ऐसा कई बार खुद कहा है...ऐसा नहीं है कि कमलेश्वर म, नोहर श्याम जोशी, या अलका सरावगी को या श्रीलालशुक्ल ( इस सूची में और भी कई नाम शामिल हैं )को मिले पुरस्कार को मैं गिरोहबंदी का परिणाम मानता हूँ..लेकिन पुरस्कारों को लेकर उदय जी कि स्थिति थोड़ी विशिष्ट है. वो कल तक पुरस्कारों को गिरोहबाजों का खेल मानते थे..
क्या? क्या ?
क्या मैं उदय जी को बधाई दूं? क्या उदय प्रकाश ने पुरस्कार देने वालों को क्लीन चिट दे दी है ? उदय जी से यह सवाल बहुत लोग पूछेंगे . कही न कही वह इस सवाल का जवाब भी देंगे ..आखिर राडियागेट के इस ज़माने में अविश्वास करना ही निरीह जनता के पास एकमात्र अस्त्र है..और ये अस्त्र उदय प्रकाश ने ही कई पाठकों को दिया है...
क्या? क्या ?
क्या मैं उदय जी को बधाई दूं? क्या उदय प्रकाश ने पुरस्कार देने वालों को क्लीन चिट दे दी है ? उदय जी से यह सवाल बहुत लोग पूछेंगे . कही न कही वह इस सवाल का जवाब भी देंगे ..आखिर राडियागेट के इस ज़माने में अविश्वास करना ही निरीह जनता के पास एकमात्र अस्त्र है..और ये अस्त्र उदय प्रकाश ने ही कई पाठकों को दिया है...
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