26 October 2013

संयुक्त राष्ट्र में दिया गया मलाला यूसुफजई का भाषण

संयुक्त राष्ट्र  में दिया गया मलाला यूसुफजई का भाषण किसने लिखा, यह शोध का विषय होना चाहिए.   वैसे , जिसने भी यह भाषण लिखा है उसने  कई मकसदों को इसमें एकसाथ मिलाया है. कोई चाहे तो इसे ग्लोबल प्रोपगेंडा भी  कह सकता है. फिलहाल अगर आपकी इच्छा है, रूचि है, तो "मलाला दिवस" के मौके पर  दिए गए मलाला यूसुफ़जई के इस भाषण को पढ़ सकते हैं.



आदरणीय बान की मून, महासचिव संयुक्त राष्ट्र, संयुक्त राष्ट्र महासभा के अध्यक्ष वुक जेरेमिक, वैश्विक शिक्षा के लिए संयुक्त राष्ट्र के राजदूत श्री गाॅर्डन ब्राउन, मुझसे बड़े आदरणीय जन, मेरे प्यारे भाइयों और बहनों.

अस्सलाम अलैकुम...

एक लंबे वक्फे के बाद फिर से बोलना, मेरे लिए एक फख्र की बात है. यहां इतने सम्मानीय लोगों के बीच होना मेरे जीवन की एक महान घड़ी है. मेरे लिए यह बेहद गौरव की बात है कि मैंने महरूम बेनजीर भुट्टो का शॉल ओढ़ रखा है. मुझे यह नहीं पता कि मैं कहां से अपनी बात शुरू करूं. मुझे यह नहीं मालूम कि लोग मुझसे क्या बोलने की उम्मीद कर रहे हैं, लेकिन सबसे पहले उस खुदा का शुक्रिया जिनकी निगाह में हम सब बराबर हैं. आप सभी लोगों का शुक्रिया जिन्होंने मेरी सलामती और नयी जिंदगी के लिए दुआ मांगी. लोगों ने मुझे जितना प्यार दिया है, उस पर यकीन करना मुश्किल है. मुझे दुनिया के कोने-कोने से मेरी खुशामती की दुआओं से भरे हजारों कार्ड और तोहफे मिले हैं. आप सभी को इनके लिए शुक्रिया. उन बच्चों का शुक्रिया जिनके मासूम अल्फाज मेरी हौसला अफजाई करते हैं. अपने से बड़ों का शुक्रिया, जिनकी दुआओं ने मुझे मजबूती दी है. मैं पाकिस्तान और ब्रिटेन हाॅस्पीटल के अपने डाॅक्टरों, नर्सों व कर्मचारियों को, साथ ही यूनाइटेड अरब अमीरात सरकार को शुक्रिया कहना चाहती हूं, जिन्होंने स्वस्थ होने में मेरी मदद की.

मैं संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मूल को उनके ग्लोबल एजुकेशन फर्स्ट  (सबसे पहले शिक्षा की वैश्विक  मुहिम) की पहल का,  साथ ही वैश्विक शिक्षा के लिए संयुक्त राष्ट्र के राजदूत  गाॅर्डन ब्राउन का और संयुक्त राष्ट्र महासभा के अध्यक्ष वुक जेरेमिक का पुरी तरह समर्थन करती हूं. वे दुनिया को लगातार जो लीडरशिप दे रहे हैं, उसके लिए मैं उनकी शुक्रगुजार हूं. आप,  हम सभी को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं.

मेरे प्यारे भाइयों ओर बहनों, एक बात को हमेशा गांठ बांध कर याद रखिए, मलाला दिवस, मेरा दिवस नहीं है. यह वैसी हर महिला, हर बच्चे और हर लड़की का दिन है, जिसने अपने अधिकारों के लिए आवाज उठायी है.

सैकड़ों मानवाधिकार कार्यकर्ता और सामाजिक कार्यकर्ता न सिर्फ अपने अधिकारो के लिए आवाज उठा रहे हैं, बल्कि वे शान्ति, शिक्षा और समानता के अपने लक्ष्यों के लिए संघर्ष कर रहे हैं. आतंकवादियों के हाथों हजारों लोग मारे गये हैं, लाखों लोग घायल हुए हैं. मैं उनमें से ही एक हूं. इसलिए मैं यहां खड़ी हूं, क्योंकि मैं कई लड़कियों में से एक हूं. मैं सिर्फ अपनी तरफ से नहीं बोल रही हूं, बल्कि उन सभी की तरफ से बोल रही हूं, जिनकी आवाज नहीं सुनी जाती. उनकी तरफ से जिन्होंने अपने अधिकारों की खातिर लड़ाई लड़ी है. शान्ति के साथ रहना उनका हक है. गरिमा और सम्मान के साथ रहना उनका हक है. समानता और अवसर की मौजूदगी उनका हक है. शिक्षित होना उनका हक है.

मेरे प्यारे साथियों, नौ अक्तूबर, 2012 को तालिबान ने मेरे माथे के बायें हिस्से में गोली मारी थी. उन्होंने मेरी साथियों पर भी गोलियां बरसायीं. उन्होंने सोचा कि गोलियां हमें खामोश कर देंगी. लेकिन वे हार गये. और उस खामोशी से हजारों आवाजें बाहर निकल पड़ीं. आतंकवादियों ने सोचा कि वे मेरे मकसद को बदल देंगे और मेरी महत्वाकांक्षाओं के पर कतर देंगे. लेकिन इसने मेरे जीवन में कुछ भी नहीं बदला, सिवाय इस बात के कि मेरी कमजोरियां, डर और निराशा खत्म हो गयी. मेरे अंदर,एक शक्ति,  क्षमता और साहस का जन्म हुआ. मैं आज भी वही मलाला हूं, मेरी आशाएं वैसी ही हैं. मेरे सपने भी पहले की ही तरह जिंदा हैं. प्यारे भाइयों और बहनों मैं किसी के खिलाफ नहीं हूं. मैं यहां इसलिए नही खड़ी हूं ताकि तालिबान या किसी दूसरे आतंकी संगठन से बदला लेने की भाषा मे बात करूं. मैं यहां खड़ी हूं ताकि हर बच्चे के लिए शिक्षा का आधिकार की मांग उठा सकूं. मैं तालिबान और दूसरे कट्टरपंथी आतंकवादियों के बच्चे-बच्चियों के लिए शिक्षा की वकालत करती हूं. मेरे मन में उस तालिब के लिए भी नफरत नहीं, जिसने मुझे गोली मारी. अगर मेरे हाथों में बंदूक होती और वह मेरे सामने खड़ा होता, तो भी मैं उस पर गोली नहीं चलाती. यह वह करुणा है, जो मैंने दया के पैगंबर मोहम्मद, ईसा मसीह और भगवान बुद्ध से सीखी है. यह परिवर्तन की वह परंपरा है, जो मुझे मार्टिन लूथर किंग, नेल्सन मंडेला और मोहम्मद अली जिन्ना से विरासत में मिली है.

यह अहिंसा का वह फलसफा है जिसका पाठ मैंने मैंने गांधी, बाचा खान और मदर टेरेसा से सीखा है. लोगों को को माफ करने की यह क्षमता मैंने अपने माता-पिता से सीखी है. मेरी आत्मा मुझसे यही कह रही है कि अमन के साथ रहो और हर किसी से प्यार करो.

मेरे प्यारे भाइयों और बहनों हम अंधेरे का महत्व तब समझते हैं, जब हमारा सामना अंधेरे से होता है. हमें अपनी आवाज का महत्व तब पता चलता है, जब हमें खामोश कराया जाता है. इसी तरह उत्तरी पाकिस्तान के स्वात में जब हमने बंदूकें देखीं, तब हमें किताब और कलम का महत्व पता चला. पुरानी कहावत कि कलम तलवार से ज्यादा ताकतवर होती है, सही है. कट्टरवादियों को किताबों और कलमों से डर लगता है. शिक्षा की शक्ति उनमें खौफ पैदा करती है. महिलाएं उन्हें भयभीत करती हैं. महिलाओं की आवाज की ताकत उन्हें डराती है.  यही वजह है कि उन्होंने हाल ही में क्वेटा में किये गये हमले में 14 मासूम बच्चों की जान ले ली. यही कारण है कि वे महिला शिक्षिकाओं की हत्या करते हैं. यही कारण है किवे रोज स्कूलों को बम से उड़ा रहे हैं, क्योंिक वे पहले भी और आज भी उस बदलाव और समानता से डरे हुए हैं जो हम समाज में ला सकते हैं.  मुझे याद है कि हमारे स्कूल के एक लड़के से एक पत्रकार ने सवाल किया था, ‘तालिबान शिक्षा के खिलाफ क्यों हैं?’ उसने बेहत सहजता से इसका जवाब दिया था, ‘ क्योंकि एक तालिब को नहीं मालूम कि उस किताब के भीतर क्या लिखा है. ’ उनको लगता है कि भगवान एक पिलपिला, रूढ़ीवादी जीव है, जो लोगों के सिर पर सिर्फ इसलिए बंदूक तान देगा, क्योंकि वे स्कूल जा रहे हैं.

आतंकवादी अपने निजी फायदों के लिए इसलाम के नाम का दुरुपयोग कर रहे हैं. पाकिस्तान एक शान्तिप्रेमी लोकतांत्रिक देश है. पख्तून अपने बच्चों और बच्चियों के लिए शिक्षा चाहते हैं. इसलाम शान्ति, मानवता और भाइचारे का मजहब है. इसके अनुसार हर किसी का कर्तव्य है कि हर बच्चा-बच्ची शिक्षा हासिल करे. शिक्षा के लिए शांति जरूरी है. दुनिया के कई हिस्सों में खासकर पाकिस्तान और अफगानिस्तान में आतंकवाद, युद्ध और संघर्ष बच्चों को स्कूल जाने से रोक रहे हैं. हम लोग सचमुच में इन युद्धों से थक गये हैं. दुनिया के कई हिस्सों में इसकी वजह से बच्चों और महिलाओं को कई तरह के कष्टों का सामना करना पड़ रहा है.

भारत में मासूम गरीब बच्चे बाल श्रम के शिकार हैं. नाईजीरिया में कई स्कूल तबाह कर दिये गये हैं. अफगानिस्तान में चरमपंथ ने लोगों के जीवन को प्रभावित किया है. कम उम्र की लड़कियों को घरेलू बाल मजदूर के तौर पर काम करना पड़ता है. उन्हें कम उम्र में शादी करने के लिए मजबूर किया जाता है.गरीबी, उपेक्षा, नस्लवाद और मौलिक अधिकारों से महरूम किया जाना; ये वे समस्याएं हैं, जिनका सामना आज स्त्री और पुरुष दोनों को करना पड़ रहा है.

आज मैं महिलाओं के अधिकारों और लड़कियों की शिक्षा पर सबसे ज्यादा बात इसलिए कर रही हूं क्योंकि सबसे ज्यादा कष्ट वे ही उठा रही हैं. एक समय था जब महिला कार्यकर्ता  अपने अधिकारों के लिए पुरुषों से आगे आने की अपील करती थीं, लेकिन अब हम यह काम खुद करेंगे. मैं पुरुषों से यह नहीं कह रही कि वे स्त्रियों के अधिकारों के लिए बोलना छोड़ दें, लेकिन मैं मानती हूं कि माहिलाओं को खुद आजाद होना होगा और अपने अधिकारों के लिए खुद आवाज उठानी होगी. इसलिए मेरे प्यारे भाइयों और बहनों यह आवाज उठाने का वक्त है.इसलिए आज हम विष्व के नेताओं से यह अपील करते हैं कि वे अपनी नीतियों को षांति और समृद्धि के पक्ष में बदलें. मैं उनसे अपनी करती हूं कि उनकी नीतियां बच्चों और महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा के लिए होनी चाहिए. केई ऐसा समझौता जो महिलाओं के अधिकारों के खिलाफ जाता है, हमें मंजूर नहीं है.

हम दुनिया की सभी सरकारों से हर बच्चे के लिए मुफ्त और अनिवार्य षिक्षा की व्यवस्था करने की अपील करते है. हम उनसे आतंकवाद और खून-खराबे के खिलाफ संघर्ष करने की, बच्चों को अत्याचारों से बचाने की दरख्वास्त करते हैं. हम विकसित देशों से अपील करते हैं कि वे विकासशील देशों में लड़कियों के लिए शिक्षा के अवसरों में वृद्धि लाने में मदद करें.  हम दुनिया के सभी समुदायों से अपील करते हैं कि वे सहिष्णु बनें और जाति, नस्ल, धर्म, पंथ या एजेंडे पर आधारित पूर्वाग्रहों से मुक्त  हो कर स्त्रियों की आजादी और समानता को सुनिष्चित करने की दिशा में कदम बढ़ाएं, जिससे वे अपना विकास कर पायें.हम सभी तब तक सफल नहीं हो सकते, जब कि आधी आबादी को पिछड़ेपन में जीने के लिए मजबूर किया जायेगा. हम दुनिया भर की अपनी बहनों से अपील करना चाहते हैं कि वे साहसी बनें, अपने भीतर ताकत पैदा करें और अपने भीतर दबी संभावनाओं को हासिल करें.

मेरे प्यारे भाइयों और बहनों हम हर बच्चे के बेहतर भविष्य के लिए स्कूल और शिक्षा चाहते हैं. हम शान्ति  और शिक्षा की मंजिल तक अपनी यात्रा को ले जाने के लिए कृत संकल्प हैं. हमें कोई नहीं रोक सकता. हम अपने अधिकारों के लिए आवाज उठायेंगे और बदलाव लेकर आयेंगे. हम अपने शब्दों की ताकत को पहचानते हैं. हमारे शब्द पूरी दुनिया को बदल सकते हैं, क्योंकि हम सब साथ हैं, शिक्षा के उद्देश्य के लिए एकजुट हैं. और अगर हमें अपने लक्ष्यों को हासिल करना है, तो हमें अपने आप को शिक्षा के शस्त्र से ताकतवर बनाना होगा और खुद एकता और बहनापे के मजबूत कवच से अपनी रक्षा करनी होगी.

भाइयों और बहनों हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि दुनिया की एक बड़ी आबादी गरीबी, अन्याय और उपेक्षा का दंश झेल रही है. हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि करोड़ों बच्चे स्कूल से बाहर हैं. हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हमारे भाई-बहन एक चमकते शान्तिपूर्ण भविष्य का इंतजार कर रहे हैं.

इसलिए आएं, अशिक्षा, गरीबी और आतंकवाद के खिलाफ एक महान संघर्ष की शुरुआत करें. आएं हम सब अपनी कलम और किताबों को हाथों में थाम लें. उनसे ज्यादा ताकतवर अस्त्र और कोई नहीं है. एक बच्चा, एक शिक्षक, एक किताब और एक कलम दुनिया को बदल सकते हैं. शिक्षा ही एकमात्र समाधान है. सबसे पहले शिक्षा. एजुकेशन फर्स्ट।

शुक्रिया.



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