अफ्रीकी साहित्य के पिता कहे जानेवाले चिनुआ अचेबे के निधन की खबर तीसरी दुनिया के साहित्य में दिलचस्पी रखने वाले हर व्यक्ति को व्यथित कर गयी है। ल्योसा और मार्खेज जैसे लैटिन अमेरिकी साहित्यकारों के साथ अफ्रीका के अचेबे उन साहित्यकारों में शामिल रहे जिन्होंने विश्व साहित्य के नक़्शे पर तीसरी दुनिया की दमदार उपस्थिति दर्ज करायी। तीसरी दुनिया की कहानियों को वैश्विक गल्प का हिस्सा बनाया। वर्ष 1958 में उनके द्वारा लिखा पहला उपन्यास 'थिंग्स फॉल अपार्ट' बेहद लोकप्रिय हुआ था। दुनियाभर में इस उपन्यास की एक करोड़ से ज्यादा प्रतियां बिक चुकी हैं। पचास से ज्यादा भाषाओं में इस उपन्यास का अनुवाद हुआ है। यह उपन्यास साम्राज्यवाद के चरित्र को सटीक तरीके से सामने लाता है. अचेबे को श्रद्धांजलि देता हुआ गार्जियन में छपे एलिसन फ्लड के लेख का हिंदी अनुवाद.
चिनुआ अचेबे नहीं रहे. वे बयासी साल के थे. नाइजीरिया के उपन्यासकार अचेबे को कई लोग अफ्रीकी साहित्य के पिता की पदवी देते हैं.
पेंगुइन के प्रकाशन निदेशक सिमोन विंडर ने उनकी मौत के बाद उन्हें बेहद उल्लेखनीय शख्सीयत की संज्ञा देते हुए कहा कि वे महानतम अफ्रीकी साहित्यकार थे. अचेबे के परिवार ने निजता और एकांत का अनुरोध करते हुए ‘सर्वकालिक महान साहित्यिक आवाजों में से एक’ को श्रद्धांजलि दी. ‘ जो एक प्यारे पति, पिता, चाचा और दादा भी थे. जिनकी बुद्धिमत्ता और साहस उन सभी के लिए प्रेरणा है, जो उन्हें जानते थे. ’ उपन्यासकार, कवि और निबंधकार- एचेबे संभवतः सबसे ज्यादा अपने पहले उपन्यास थिंग्स फाॅल अपार्ट के लिए जाने जाते हैं. इग्बो योद्धा ओकोन्कवो और उपनिवेशवादी शासन के दौर की कहानी कहनेवाले इस उपन्यास की दुनियाभर में एक करोड़ से ज्यादा काॅपियां बिक चुकी हैं और इसका प्रकाशन 50 से ज्यादा भाषाओं में हो चुका है. इस उपन्यास में अचेबे पाठक को उस इग्बो गांव में लेकर जाते हैं, जिसमें 19वीं सदी के आखिरी में गोरे लोगों का आगमन हो रहा है. उपन्यास का शीर्षक डब्लु बी यीट्स की कविता की पंक्तियों थिंग्स फाल अपार्ट/ द सेंटर कांट होल्ड...( चीजें चरमरा कर बिखर जाती है...केंद्र ही स्थिर नहीं रह पाता) से लिया गया है ....उपन्यास में ओकोन्कवो का दोस्त ओबिरीका कहता है, ‘‘गोरा आदमी बहुत चालाक है...वह बहुत चुपचाप और शांत तरीके से अपने धर्म के साथ आया था...हम उसकी मूर्खता को देख कर आश्चर्यचकित हुए थे और उसे यहां रहने की इजाजत दे दी. अब उसने हमारे भाइयों को जीत लिया है. हमारा कबीला अब कभी एकता के साथ, भाई-भाई की तरह नहीं रह सकता. ’’ कवयित्री जैकी हे ने अचेबे को अफ्रीकी गल्प का पितामह कहा था. जिसने दूसरों को भी राह दिखाई. साथ में यह भी जोड़ा था कि उन्होंने थिंग्स फाॅल अपार्ट अनगिनत बार पढ़ी है.
अचेबे को उनके काव्य संग्रह क्रिस्मस इन बियाफ्रा के लिए काॅमनवेल्थ पोएट्री प्राइज से नवाजा गया था. वे अपने उपन्यास एंटहिल्स ऑफ़ सवाना’ के लिए 1987 के बुकर प्राइज फाइनलिस्ट थे. 2007 में उन्हें मैन बुकर इंटरनेशनल प्राइज दिया गया. उस समय ज्यूरी की अध्यक्षता कर रहे एलेन शोवाल्टर ने अचेबे के लिए कहा था, ‘‘ उन्होंने आधुनिक अफ्रीकी उपन्यास की नींव रखी.’’ उनके साथी जज दक्षिण अफ्रीकी नोबेल विजेता नैडीन गाॅर्डीमर ने कहा था, उनके फिक्शन मनोवैज्ञानिक उपन्यास, जॉयसियन चेतना और अनुक्रमों के उत्तर आधुनिक विखंडन का मौलिक संश्लेषण हैं.’’ उनको पढ़ना एक आह््लादकारी अनुभव है..प्रकाशित होना है.’’
नेल्सन मंडेला ने अचेबे को अफ्रीका को बाकी दुनिया तक ले कर जाने वाला और ऐसा लेखक कहा है, जिसके साथ रहते हुए जेल की दीवारें टूट गयी थीं.’’
अचेबे को उनके प्रभावषाली लेख, ‘‘ एन इमेज आॅफ अफ्रीका: रेसिज्म इन कोनाड्र्स हार्ट आॅफ डार्कनेस’’(1975) के लिए भी जाना जाता है. यह कोनार्ड की तीखी आलोचना है.( जोसेफ कोनार्ड ने हार्ट ऑफ़ डार्कनेस नामक उपन्यास अफ्रीका में बर्बर बनाम सभ्यता के विमर्ष पर केंद्रित करके लिखा था) इस लेख में अचेबे कहते हैं कि कोनार्ड ने अफ्रीकी महादेश को पहचान में आ सकने लायक मानवता के किसी भी चिह्न से खाली एक पराभौतिक युद्धभूमि मे बदल दिया. जिसमें घुमक्कड़ यूरोपियन उसकी उसकी मुष्किलों में दिलचस्पी लेता है.’’ क्या कोई उपहासपूर्ण, बेतुके और घिनौने घमंड को महसूस नहीं कर सकता, जिसमें एक क्षुद्र यूरोपीय दिमाग की संतुष्टि के लिए अफ्रीकियों की भूमिका परजीवी तक सीमित कर दी गयी है! इस लेख को कोनार्ड के की किताब पर सबसे सशक्त और मौलिक हस्तक्षेप माना जाता है, जिसने साहित्यिक पाठ के सामाजिक अध्ययन की शुरुआत की. खासकर इस बात की कि 20वीं सदी की साहित्यिक कल्पना पर सत्ता संबंध का क्या प्रभाव पड़ा?
1930 में नाइजीरिया के ओगिडी में जन्मे अचेबे को यूनिवर्सिटी ऑफ़ इबादान से छात्रवृत्ति मिली. बाद में उन्होंने नाइजीरिया ब्राडकास्टिंग सर्विस के लिए बतौर स्क्रिप्ट राइटर भी काम किया. उन्होंने ‘‘थिंग्स फाल अपार्ट’’ उपन्यास अंगरेजी में लिखा, जिसके लिए न्गूगी वा थियोंगो समेत कइयों ने उनकी आलोचना की है. लेकिन अचेबे ने कहा है कि ‘‘मुझे लगा कि अंगरेजी भाषा मेरे अफ्रीकी अनुभवों का भार उठाने में कामयाब हो पायेगी. हां मुझे इस बात का एहसास था कि इसे नयी अंगरेजी होना होगा, जो अफ्रीकी परिवेष में जंचने लायक हो.’’
थीम के रूप में नाइजीरिया
1966 में प्रकाशित हुआ अचेबे का चैथा उपन्यास ‘‘ए मैन ऑफ़ द पीपुल’’ ने उपन्यास के प्रकाशन से ठीक पहले हुए तख्तापलट का का पूर्वानुमान लगाया था.’’ उन्होंने गार्जियन से कहा था, मैंने उपन्यास का अंत एक तख्तापलट से किया था. यह अपने आप में उपहास लायक था. क्योंकि नाइजीरिया इतना बड़ा देश है कि यहां ऐसे तख्तापलट की कोई संभावना नहीं बनती थी. यह उपन्यास के लिए सही था. उसी रात वहां तख्तापलट हो गया. और हमारे भीतर बची कोई ऐसी आशा कि चीजें ठीक हो जायेंगी, बिखर गयी. वह
ऐसी रात थी, जिससे हम आज तक बाहर नहीं आ पाये हैं. उनकी सबसे हालिया किताब ‘‘ देयर वाज एन कंट्री’’ थी. यह 1967-70 के नाइजीरियाई गृह युद्ध का वृत्तांत है. अचेबे बियाफ्रा राज्य के नाइजीरिया से अलग होने के समर्थक थे. (बियाफ्रा दक्षिण-पूर्वी नाइजीरिया स्वतंत्रता की मांग करनेवाला राज्य था. जिसका अस्तित्व 1967 से 1970 तक बना रहा.) लेकिन 1970 में गृह युद्ध के समाप्त होने के बाद अचेबे ने राजनीति से संन्यास ले लिया. क्योंकि उन्हें लगा कि राजनीति में शामिल ज्यादातर लोग इसमें सिर्फ निजी लाभ के लिए हैं.’’ और खुद को अकादमिक कार्यों के प्रति समर्पित कर दिया.
1990 में नाइजीरिया में हुई एक कार दुर्घटना के बाद उनके शरीर के कमर से नीचे का हिस्सा लकवाग्रस्त हो गया. जिसने उन्हें अमेरिका जाने पर विवश कर दिया. लेकिन वह नाइजीरिया को बेतरह याद करते रहे.
अचेबे ने दो बार नाइजीरिया सरकार की उन्हें कमांडर ऑफ़ फेडरल रिपब्लिक की पदवी देने की पेशकश को ठुकरा दिया था. एक बार 2004 में और दूसरी बार 2011 में. 2004 में उन्होंने लिखा था, ‘ कुछ समय से मैं नाइजीरिया के घटनाक्रमों को काफी भय और हताशा के साथ देख रहा हूं. मैंने खासकर अपने गृह राज्य अनांबरा में व्याप्त अराजकता को देखा है, जहां कुछ आवारों का गिरोह उंचे रसूख के दम पर मेरी मातृभूमि को पूरी तरह दीवालिया और कानून-प्रशासन रहित राज्य बनाने के लिए कृत-संकल्प लिये नजर आता है. मैं इन छुटभैयों के गिरोहों के मनमानेपन और राष्ट्रपति की खामोशी, अगर इसमें उनकी मिलीभगत नहीं है, से पूरी तरह व्यथित हूं. आपके संरक्षण में आज के नाइजीरिया की स्थिति इतनी खतरनाक है कि खामोश रहना मुमकिन नहीं है...मुझे निश्चित तौर पर अपनी निराशा को दर्ज करना चाहिए और मुझे दिये गये सम्मान को ठुकरा कर अपना विरोध दर्ज करना चाहिए...
नेल्सन मंडेला ने अचेबे को अफ्रीका को बाकी दुनिया तक ले कर जाने वाला और ऐसा लेखक कहा है, जिसके साथ रहते हुए जेल की दीवारें टूट गयी थीं.’’--
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