वेनेजुएला के राष्ट्रपति ह्यूगो शावेज की मृत्यु पर "द गार्जियन "में छपा मशहूर राजनीतिक टिप्पणीकार तारिक अली का लेख
"वेनेजुएला शावेज को चाहनेवालों और उनके आलोचकों के बीच बंटा हुआ है. वे मृत्यु तक अपराजित रहे. लेकिन असल इम्तिहान आगे है. जनता को संगठित कर सामाजिक लोकतंत्र की जो व्यवस्था उन्होंने बनायी, उसे आगे ले जाने की जरूरत है. क्या उनके उत्तराधिकारी इस जिम्मेदारी को निभा पायेंगे? एक तरह से शावेज के बोलिवेरियन प्रयोग की सबसे बड़ी परीक्षा यही है."
शावेज की जीत से पहले शायद ही कोई वेनेजुएला की बात करता था, उसके बारे में सोचता था. 1999 में शावेज की जीत के बाद पश्चिम के हर महत्वपूर्ण मीडिया घरानों को लगा कि वेनेजुएला में अपना संवाददाता जरूर होना चाहिए. हालांकि चूंकि वे सभी एक ही बात कहने वाले थे, (कि वेनेजुएला साम्यवादी शैली के तानाशाही शासन की कगार पर खड़ा है) इसलिए ज्यादा बेहतर होता कि वे अपने संसाधनो को इस तरह जाया करने की जगह उसका मिलजुल कर इस्तेमाल करते.
शावेज से मेरी पहली मुलाकात 2002 में हुई. ठीक उस सैनिक तख्तापलट की नाकाम कोशिश के बाद, जिसे अमेरिका और स्पेन ने हवा दी थी. इसके बाद कई बार उनसे मिलने का मौका मिला. उन्होंने मुझसे ब्राजील के पोर्टो एलेग्रे मे होनेवाले वर्ल्ड सोशल फोरम में आने का न्योता दिया था. वहां उनका मुझसे सवाल था, -आप अब तक वेनेजुएला क्यों नहीं आये हैं? जल्दी आइये.’ मैंने उनकी बात मानी. मुझे उनके बारे मे जो चीज सबसे ज्यादा प्रभावित करती थी, वह थी उनकी खरी-खरी कहने की आदत और उनका साहस. कई बार जो सिर्फ उनकी व्यग्रता या हड़बड़ाहट जैसी दिखाई देती थी, वह दरअसल काफी सोची-विचारी प्रतिक्रिया होती थी.
एक ऐसे समय में जब दुनिया मूक हो गयी थी. जब सेंटर-लेफ्ट और सेंटर-राइट के बीच अंतर करना काफी मुश्किल हो गया था, और दोनों के नेता पैसा कमाने को ही अपना लक्ष्य मान चुके थे, शावेज ने राजनीतिक लैंडस्केप में नयी जगमगाहट पैदा की.
वे एक कभी न थकनेवाले व्यक्ति की तरह मालूम होते थे. घंटो अपने देश की जनता के साथ गर्माहट भरी गूंजती आवाज में, जिसमें एक तीखी वाक् पटुता होती थी संवाद करते थे. इसमें कुछ ऐसा होता था कि आप चाह कर भी उसकी ओर ध्यान दिये बगैर नहीं रह सकते थे. उनकी आवाज आश्चर्यजनक रूप से दूर-दूर तक जाती थी. उनके भाषण में धर्म वाक्यों की भरमार हुआ करती थी, लैटिन अमेरिका और वेनेजुएला का इतिहास हुआ करता था. 19वीं शताब्दी के क्रांतिकारी नेता सिमोन बोलिवर की उक्तियां हुआ करती थीं. विश्व की स्थिति पर टिप्पणियां होती थीं. गाने होते थे. वे अपने श्रोताओं से पूछते थे, "बुर्जुआ तबके को जनता के बीच मेरे गाने से शर्मिंदगी होती है. क्या आपको यह खराब लगता है?" जवाब में ‘न’ का जबरदस्त स्वर उभरता था. तब वे उन्हें साथ में गाने और गुनगुनाने को कहते थे. ‘‘ जोर से गाओं ताकि शहर के पूर्वी हिस्से में बसे वे लोग तुम्हारी आवाज को सुन सकें.’’ इसी तरह की एक रैली में उन्होंने मुझसे कहा, तुम आज थके हुए से दिखाई दे रहे हो. क्या तुम शाम तक साथ दे पाओगे. मेरा जवाब था, ‘’यह इस बात पर निर्भर करता है कि आप कितनी देर तक भाषण देनेवाले हैं.’’ उन्होंने वादा किया,‘ यह छोटा भाषण होगा. तीन घंटे के भीतर, बोलिवेरियनों ने, (शावेज के समर्थक इसी नाम से जाने जाते हैं) एक नया राजनीतिक कार्यक्रम प्रस्तावित किया, जो वाशिंगटन सहमति: (अपने देष में नव-उदारवाद और बाहर युद्ध) को चुनौती देता था. शावेज को लगातार निशाना बनाये जाने की यही वजह बना. यह तय है कि उनकी मृत्यु के बाद भी ऐसी कोशिशें लंबे अरसे तक चलती रहेंगी.
उनके जैसे राजनेता लगातार अस्वीकार्य होते गये थे. उन्हें सबसे ज्यादा क्षोभ इस बात से होता था कि किस तरह दक्षिण अमेरिकी मुख्यधारा के राजनीतिज्ञ अपने ही नागरिकों के प्रति अवमानना भरी उपेक्षा का भाव रखते हैं. वेनेजुएला का संभ्रांत वर्ग अपने नस्लवाद के लिए कुख्यात है. वे अपने ही देश के चुने हुए राष्ट्रपति को असभ्य और असंस्कृत मानते थे. एक जैम्बो, जो अफ्रीकी और मूल देसी नस्लों की संकर संतान था, जिस पर यकीन नहीं किया जा सकता था. उनके समर्थकों को निजी टेलीविजन पर बंदरों की तरह दर्शाया जाता था. कोलिन पावेल को काराकस में अमेरिकी दूतावास को सार्वजनिक तौर पर तब डांट लगानी पड़ी जब उसकी एक पार्टी में शावेज को एक गोरिल्ला की तरह दर्शाया गया था.
क्या वे इससे हैरान हुए थे. चेहरे पर सोच की मुद्रा के साथ उनका जवाब था- ‘‘नहीं. मैं यहीं रहता हूं. उन्हें अच्छी तरह से पहचानता हूं. हमारे यहां इतनी बड़ी तादाद में लोग सेना में भर्ती होते हैं, उसका एक कारण यह है कि यहां दूसरे दरवाजे बंद हैं.’’ लेकिन अब ऐसा नहीं है. वे शायद ही किसी भ्रम में रहते थे. उन्हें इस बात का एहसास था कि स्थानीय शत्रु यूं ही बेवजह निर्वात में गुस्सा नहीं होते, उनके खिलाफ साजिश नहीं रचते. उनके पीछे दुनिया का सबसे ताकतवर देश खड़ा है. कुछ पल के लिए उन्हें लगा था कि ओबामा थोड़े से अलग होंगे. लेकिन, होंडुरास के सैनिक तख्तापलट ने उनकी ऐसी किसी धारणा का अंत कर दिया.
अपने देश की जनता के प्रति उनका कर्तव्यबोध जबरदस्त था. वे उनके जैसे ही थे. यूरोप के समाजवादी डेमोक्रेट्स की तरह उन्हें ऐसा कोई विश्वास कभी नहीं रहा कि मानवता की बेहतरी कारपोरेशनों और बैंकरों के राज में होगी और ऐसा वे 2008 में वाल स्ट्रीट के चारों खाने चित्त होने से काफी पहले कह चुके थे.
काराकस में मैंने उनसे बोलिवेरियन परियोजना के बारे में पूछा था. वे इसके प्रति काफी स्पष्ट थे. अपने कई अति उत्साही समर्थकों की तुलना में कहीं ज्यादा साफ और स्पष्ट. ‘‘मैं माक्र्सवादी क्रांति की रूढि़यों में यकीन नहीं करता हूं. मैं नहीं मानता कि हम सर्वहारा क्रांति के युग में जी रहे हैं. हर चीज की पुनव्र्याख्या की जानी चाहिए. यथार्थ हमें हर दिन यही बता रहा है. क्या वेनेजुएला में आज हमारा लक्ष्य निजी संपत्ति का खात्मा, एक वर्गहीन समाज की रचना करना है? मुझे ऐसा नहीं लगता. लेकिन कोई मुझे यह कहे कि चूंकि हकीकत यही है, इसलिए गरीबों की मदद के लिए कुछ नहीं किया जा सकता, वे गरीब जिन्होंने इस देश को अमीर बनाया है, और कभी मत भूलो कि इनमें से कई गुलाम मजदूर थे, तब मेरा कहना है कि, भाई मैं इस बात से इत्तेफाक नहीं रखता. मैं यह कभी स्वीकार नहीं करूंगा कि इस देश में कभी भी संपत्ति का पुनर्वितरण नहीं हो सकता. हमारा उच्च वर्ग तो टैक्स तक चुकाना पसंद नहीं करता. यह भी एक कारण है कि वे मुझसे नफरत क्यों करते हैं. हमने कहा, तुम्हें अपना टैक्स जरूर चुकाना चाहिए. मेरा यकीन है कि युद्ध में मारा जाना कहीं बेहतर है, बनिस्बत कि इसके कि पवित्र क्रांतिकारी विचारों का झंडा उठाये रखो और करने के नाम पर कुछ मत करो. यह मुझे एक सुविधाजनक काम लगता है. एक अच्छा बहाना. कोशिश करो और अपनी क्रांति को जमीन पर उतारने की पहल करो. युद्ध के मैदान में जाओ. सही दिशा में थोड़ी सी भी दूरी तय करो. भले ही यह दूरी मिलीमीटर बराबर ही क्यों न हो, बजाय इसके कि सिर्फ यूटोपियाई ख्यालों में खोए रहो.
फिदेल कास्त्रों के साथ उनकी नजदीकी को कई लोगों ने पिता-पुत्र के रिश्ते की तरह देखा है. यह अधूरी सच्चाई है. पिछले साल काराकस में उस हाॅस्टपीटल के बाहर भारी भीड़ जमा हो गयी थी, जहां वे कैंसर के इलाज के बाद स्वास्थ्य लाभ कर रहे थे. लोगों की आवाज लगातार तेज से तेज होती जा रही थी.शावेज ने छत पर एक लाउडस्पीकर सिस्टम लगाने का आदेश दिया और जनता को संबोधित किया. हवाना में टेलीसुर में यह दृष्य देख रहे फिदेल कास्त्रो स्तब्ध रह गये थे. उन्होंने तुरंत अस्पताल के डाइरेक्टर को फोन लगााया.‘ मैं फिदेल कास्त्रो बोल रहा हूं. तुम्हें तत्काल निलंबित कर दिया जाना चाहिए. उसे तुरंत बिस्तर पर ले जाओ और उसे कहो कि ऐसा मैंने कहा है.’’
दोस्ती से ऊपर शावेज कास्त्रो और चे ग्वेरा को ऐतिहासिक फ्रेम में देखते थे. वे बोलिवर और एंटेनियो जो सुक्रे के 20वीं शताब्दी के वारिस थे. इन्होंने दक्षिण अमेरिकी महादेश को एकीकृत करने की कोशीश की. लेकिन यह जैसे समुद्र में हल चलाने जैसा था. शावेज अपने चारों आदर्शों की तुलना में इस ख्वाब के कहीं नजदीक तक पहुंचे. वेनेजुएला में उनकी सफलता ने एक तरह की महादेशीय प्रक्रिया को जन्म दिया. बोलिविया और इक्वाडोर में समाजवादियों की जीत हुई. लुला और डिल्मा के नेतृत्व में ब्राजील ने भले ही समाजवादी माॅडल को न अपनाया हो, लेकिन उन्होंने पश्चिम को उन्हें आपस में लड़ाने, एक दूसरे के खिलाफ खड़ा करने की छूट नहीं दी. पश्चिमी पत्रकार अकसर यह कहा करते थे कि लुला शावेज से बेहतर हैं. लेकिन पिछले साल लुला ने सार्वजनिक तौर पर घोषणा की कि वे शावेज का समर्थन करते हैं। हमारे महाद्वीप के लिए उनके महत्व को कभी भी कम करके नहीं आंका जाना चाहिए.
पश्चिम में शावेज की सबसे लोकप्रिय छवि एक अत्याचारी तानाशाह की है. बोलिवेरियन संविधान जनता के व्यापक बहुमत से स्वीकार किया गया था. इसका विरोध वहां के विपक्ष, मीडिया, स्थानीय सीएनएन और पश्चिम समर्थक सभी लोग करते आये हैं. यह दुनिया का एकमात्र संविधान है जिसमें राष्ट्रपति को दस्तखतों पर आधारित जनमत संग्रह के सहारे पद से हटाने की संभावना बनायी गयी है. विपक्ष ने 2004 में शावेज को हटाने के लिए इस रास्ते के उपयोग की कोशिश भी की थी. इस तथ्य के बावजूद कि इनमें से कई दस्तखत मरे लोगों के नाम पर भी किये गये थे, वेनेजुएला की सरकार को इस चुनौती को स्वीकार कर लिया. वोट से पहले आखिरी सप्ताह में मैं काराकास में था. जब मैं शावेज से मिला वे जनमत सर्वेक्षणों के आंकड़ों मे लगे हुए थे. उन्होंने कहा कि यह काफी नजदीकी मामला हो सकता है. मैंने पूछा, अगर आप हार गये तो? बिना किसी हिचक के उनका जवाब था, मैं इस्तीफा दे दूंगा.’ वे जीत गये.
क्या कभी ऐसा होता है कि वे थक जाएं, अवसाद महसूस करें, आत्म विश्वास को हिलता हुआ महसूस करें. हां, उनका जवाब था. लेकिन यह तख्तापलट की कोशिशों या जनमत संग्रह के वक्त नहीं हुआ था. ऐसा तब हुआ था जब भ्रष्ट तेल संघों ने हड़ताल की घोषणा कर दी थी और मध्यवर्ग भी इसके समर्थन में था. क्योंकि इससे सारी जनता, खाासकर गरीबों को परेशानी होती. उन्होंने मुझसे कहा था, ‘अपने आफिस में बैठे-बैठे मैं उकता गया था. इसलिए लोगों की बात सुनने और ताजी हवा में सांस लेने के लिए मैं अपने दो साथी कामरेडों और एक सुरक्षाकर्मी के साथ निकल पड़ा. लोगों ने मुझसे जो कहा, उसने मुझे हिला कर रख दिया. एक औरत मेरे पास आयी. उसने मुझसे कहा, शा वेज मेरे साथ आओ, मैं तुम्हें कुछ दिखाती हूं. मैं उसके पीछे-पीछे उसके छोटे से घर में गया. उसका पति और उसके बच्चे सूप के पकने का इंतजार कर रहे थे. ‘देखो में जलावन के तौर पर किस चीज का इस्तेमाल कर रही हूं. चारपायी का तख्त. कल मैं इसके पाये को जलाऊंगी. इसके बाद टेबल भी जलावन में जायेगी. फिर खिडकिया, कुर्सिया. हम जूझते रहेंगे, और बचे रहेंगे, लेकिन तुम अभी हार मत मानो. मैं जब बाहर निकल रहा था, तब बच्चे निकल कर आये और उन्होंने हाथ मिलाते हुए कहा, हम बियर के बिना रह सकते हैं, लेकिन आप इन बद्जातों (भ्रष्ट तेल यूनियनों) को जरूर सबक सिखाओ.
उनके जीवन की आंतरिक हकीकत क्या थी? कोई व्यक्ति जो खास स्तर का बुद्धिमान हो, संस्कृति और व्यक्तित्व वाला हो, उसके स्वाभाविक स्वभाव-झुकाव लोगों को हमेशा दिखाई नहीं देते. शावेज तलाकशुदा थे, लेकिन अपने नाती-नातिनों के प्रति उनका स्नेह कभी संदेहों में नहीं रहा. जिन औरतों से भी उन्होंने प्यार किया, और ऐसी औरतें काफी कम थीं, सब ने शावेज को एक दिलदार प्रेमी के तौर पर याद किया है. वह भी एक दूसरे से अलग होने के काफी अरसे बाद.
जो देश वे अपने पीछे छोड़ कर जा रहे हैं, क्या वह एक स्वर्ग है? नहीं बिल्कुल भी नहीं. ऐसा कैसे हो सकता था, अगर उन समस्याओं को देखा जाये, जो उनके सामने थीं. लेकिन वे अपने पीछे एक बदला हुआ समाज छोड़ कर गये हैं, जिसमें गरीब यह महसूस करते हैं कि शासन में उनकी भी अहम हिस्सेदारी है. इसके अलावा उनकी लोकप्रियता की और दूसरी व्याख्या नहीं हो सकती. वेनेजुएला शावेज को चाहनेवालों और उनके आलोचकों के बीच बंटा हुआ है. वे मृत्यु तक अपराजित रहे. लेकिन असल इम्तिहान आगे है. जनता को संगठित कर सामाजिक लोकतंत्र की जो व्यवस्था उन्होंने बनायी, उसे आगे ले जाने की जरूरत है. क्या उनके उत्तराधिकारी इस जिम्मेदारी को निभा पायेंगे? एक तरह से शावेज के बोलिवेरियन प्रयोग की सबसे बड़ी परीक्षा यही है.
एक बात जिसके प्रति हम निश्चिन्त हो सकते हैं, उनके शत्रु उन्हें मृत्यु के बाद भी शान्ति से नहीं रहने देंगे. और उनके समर्थक, पूरे महाद्वीप और दूसरी जगहों के गरीब, उन्हें एक ऐसे राजनीतिक नेता के तौर पर देखेंगे, जिसने उनसे विपरीत स्थितियों में भी सामाजिक अधिकारों का वादा किया और उन्हें पूरा भी किया. एक ऐसे व्यक्ति के तौर पर जिसने उनकी तरफ से लड़ाई लड़ी और जीत दर्ज की.
तारिक अली अंतर्राष्ट्रीय वाम के जाने पहचाने चेहरे, राजनीतिक टिप्पणीकार और लेखक हैं। लम्बे समय से न्यू लेफ्ट रिव्यू का सम्पादन कर रहे हैं। |
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