14 March 2013

तुर्की के समाज का आईना : स्नो


इस पुरानी समीक्षा को देख कर यह लग रहा है की जल्दबाजी और स्पेस की कमी के दबाव में की गयी अखबारी समीक्षा किस तरह अधूरी रह जाती है. इन दिनों पामुक को पढ़ते हुए इस लिखे हुए की याद आयी. उम्मीद है इस पर फिर से कुछ लिखूंगा.




ओरहन पामुक वर्तमान समय के सबसे महत्वपूर्ण लेखकों में से एक हैं. बहुत कम लेखकों को इतनी लोकप्रियता नसीब होती है, जितनी पामुक को मिली है. कहा जाता है कि तुर्की की जनता पामुक के उपन्यास कुछ इस तरह पढ़ती है, जैसे अपनी नब्ज टटोल रही हो. लेकिन, पामुक की यह लोकप्रियता सिर्फ तुर्की तक ही सीमित नहीं है. पूरी दुनिया पर उनकी लेखनी का जादू सर चढ़ कर बोलता है.
वर्ष 2004 में प्रकाशित ‘स्नो’ की गिनती पामुक के सर्वश्रेष्ठ उपन्यासों में होती है. इस उपन्यास का हिंदी में भी अनुवाद हो चूका है. पिछले कुछ वर्षो में हिंदी में विदेशी भाषाओं के महत्वपूर्ण उपन्यासों के अनुवादों का जो चलन शुरू हुआ है, इसे उसी कड़ी में देखा जा सकता है. 
'स्नो’ जमा देने वाली बर्फ के भीतर से प्रेम और राजनीति की धधकती हुई कहानी कहता है. पामुक के दूसरे उपन्यासों की ही तरह यह उपन्यास तुर्की समाज की आत्मा की यात्र है. एक ऐसे तुर्की की यात्रा जो एक साथ विभाजन की शाश्वत पीड़ा, आशा, हताशा और रहस्य से भरा हुआ है. इस उपन्यास का केंद्रीय नायक ‘का’ है. एक कवि. निराशा से भरा हुआ, लेकिन फिर भी लोगों के आकर्षण का केंद्र. उसने वर्षो से कुछ नया नहीं लिखा. उपन्यास में का खुद अपनी कहानी नहीं कहता. उसकी हत्या के बाद उसकी कहानी कथावाचक द्वारा सुनाई जाती है, जिसका नाम ओरहन है. 'का' का पुराना दोस्त.
उपन्यास की शुरुआत का के 12 वर्षो के राजनीतिक निर्वासन के बाद इंस्तांबुल लौटने से होती है. वह अपनी मां की अंत्येष्टि करने को लौटा है. कार्स के लिए वह अपनी यात्र शुरू ही करता है कि एक भयंकर बर्फ की आंधी उसे घेर लेती है. तुर्की में ‘कार ’ का अर्थ होता है बर्फ. मूल तुर्की में यह उपन्यास इसी नाम से छपा था. का अपनी पहचान एक पत्रकार के रूप में बताता है, जिसका मकसद हाल में हुई कुछ हत्याओं के रहस्य को सुलझाना है. लेकिन यही उसका वास्तविक मकसद नहीं है.
दरअसल, प्रेम की एक पुरानी डोर उसे अपनी ओर खींच रही है. वह इपेक को देखना चाहता है. इपेक जो उसके छात्र जीवन की दोस्त है. इपेक की शादी का के एक वक्त के दोस्त से हुई थी, जो अब कट्टरपंथी राजनेता बन गया है. दोनों के बीच अब तलाक हो गया है. बर्फ के कारण का आगे नही बढ़ पाता. वह एक पुराने खडंहर हो चुके शहर के चक्कर लगाता है. यहां इतिहास बार-बार उसके सामने प्रकट होता है. प्राचीन ऑटोमन साम्राज्य के अवशेष, खाली अर्मीनियाई चर्च, रूसी शासकों के भूत और अतातुर्क की तसवीर.
अतातुर्क जिसने आधुनिक तुर्की गणतंत्र की नींव रखी और एक क्रूर आधुनिकता के कार्यक्रम तुर्की वासियों पर लाद दिया. जिसमें सिर ढकने वाले स्कार्फ पर प्रतिबंध भी शामिल था. का को एक पत्रकार के रूप में रखकर पामुक ने विभिन्न विचारों और आवाजों को अपने उपन्यास में शामिल करने में सफलता हासिल की है. यहां एक टूटे हुए साम्राज्य के भीतर उठने वाले कई सवाल पाठक के सामने प्रकट होते हैं. मसलन, हमें ताकतवर होना चाहिये था. हमें अपने ऊपर शर्म आनी चाहिए. आखिर ऐसा किसकी वजह से हुआ? साथ ही है अपनी अस्मिता को लेकर असहजता. यही तुर्की की ऐसे जगहों की प्रमुख आवाज है और स्नो उपन्यास की भी.
‘का’ मृत लड़कियों के बारे में पता करना चाहता है. लेकिन उसे विरोध का सामना करना पड़ता है. तुर्की की धर्मनिरपेक्ष सरकार नहीं चाहती कि वह लड़कियों की आत्महत्या पर लिखे. सरकार इसे अपनी इज्जत पर धब्बे की तरह देखती है. उसे पुलिसिया जासूस घेर लेते हैं. आम नागरिक भी उसके प्रति शंकालु हो जाते हैं. का देखता है कि तुर्की की धर्मनिरपेक्ष सरकार धर्मनिरपेक्षता के नाम पर ही किस तरह से क्रूरता बरत रही है और कैसे इसके खिलाफ इसलामी कट्टरपंथ अपनी जड़ें जमा रहा है.
उपन्यास में एक घटना है जब ‘का’ एक पेस्ट्री की दुकान में खड़ा होता है, तभी कुछ बंदूकधारी आते हैं और हिजाब पहन कर आने वाली छात्र को संस्थान से बाहर करन वाले संस्थान के निदेशक की हत्या कर देते हैं. वह किसी तरह उस इसलामी कट्टरपंथी ब्लू से मिलता है, जिसका हाथ संस्थान के निदेशक की हत्या में है. यहां वह इसलामी कट्टरपंथियों की दलील सुनता है.
यह संभवत: पामुक का पहला उपन्यास है जिसमें स्त्री को इतनी प्रमुखता दी गयी है और वह कथानक के केंद्र में है. यहां दो प्रमुख और शक्तिशाली स्त्री पात्र हैं. एक, भावनात्मक रूप से टूटी हुई इपेक और उसकी जिद्दी बहन कादीफे. इसके साथ ही हिजाब वाली वे मृत लड़कियां भी हैं, जिनका इस्तेमाल सभी अपने राजनीतिक फायदे के लिए कर रहे हैं. का इन लड़कियों की अनंत पीड़ा को समझता है.
वह महसूस करता है कि समाज के उन पर ढाये गये अत्याचार उतने पीड़ादायक नहीं थे, जितनी पीड़ादायक यह सच्चाई है कि इन्होंने बिना कोई चेतावनी दिये, एक दिन अपने रोजाना के कामों के बीच आत्महत्या का रास्ता चुन लिया.
यह उपन्यास तुर्की के समाज की बेचैनी को गहराई से देखने की कोशिश करता है. का कोई निर्णय कर पाने में खुद को असमर्थ पाता है. उसे न तो पश्चिम के ज्ञानोदय पर पूरा यकीन है, न ही उसे तुर्की में पनप रहे कट्टरपंथ में ही अपने लिए जगह दिखाई देती है. आखिरकार उसे फैसला नहीं लेना पड़ता. उसकी हत्या कर दी जाती है. पामुक के हर उपन्यास का असल हीरो तुर्की है. स्नो भी इस मायने में कोई अलग नहीं है. यह एक ऐसा उपन्यास है जिसके सहारे तुर्की और वहां के समाज के मानस को पढ़ा जा सकता है.

No comments:

Post a Comment