12 March 2013

उपन्यास को पढ़ना एक लैंडस्केप पेंटिंग में दाखिल होना है : ओरहन पामुक



हमारे समय  के बेहद महत्वपूर्ण उपन्यासकार ओरहन पामुक का लेखन पाठक पर जादू सा असर करता है. पामुक ने उपन्यास के साथ साथ साहित्य पर भी काफी लिखा है. दूसरों के लेखन पर भी और अपने लिखने और पढने पर भी. "द नेव एंड  द सेंटीमेंटल  नॉवेलिस्ट" के पहले लेख "व्हाट आवर माइंड्स डू व्हेन वी रीड  नॉवेल" में पामुक ने उपन्यास को एक प्रतिबद्ध पाठक  की नजर से देखा है. लेख के हिंदी अनुवाद की तीसरी कड़ी.



वार एंड पीस उपन्यास में जिस तरह से टाल्सटाय ने पियरे का पहाड़ी की चोटी से बोरोडिनो युद्ध देखने का वर्णन किया है, वह मेरे लिए उपन्यास को पढने मॉडल है.

उपन्यास पढ़ते वक्त हम महसूस करते हैं कि लेखक कई ब्योरों को जानबूझ कर पूर्व नियोजित तरीके से बुन रहा है. आगे बढ़ते हुए अपनी स्मृति में इन ब्योरों को संरक्षित रखने की हमें जरूरत महसूस होती है. ऐसे ब्योरे इस दृश्य में किसी पेंटिंग की तरह साफ-साफ नजर आते हैं. पाठक को एहसास होता है कि वह शब्दों के बीच न होकर किसी लैंडस्केप पेंटिंग के सामने खड़ा है. यहां दृश्यात्मक ब्योरे देने के प्रति लेखक की सतर्कता और शब्दों को लैंड स्केप पेंटिंग में उतार लेने में पाठक की कामयाबी निर्णायक भूमिका में है.

हम ऐसे उपन्यास भी पढ़ते हैं जो बड़े लैंडस्केप, या युद्ध के मैदान में घटित नहीं होते, बल्कि जिनकी कथा कमरों में चलती है. घुटन भरे घर के भीतर के माहौल में. काफ्का का मेटामॉरफॉसिस इसका अच्छा उदाहरण है. इन कहानियों को भी हम उसी तरह से पढ़ते हैं, जैसे हम किसी दृश्यभूमि को देख रहे हैं. अपने मस्तिष्क की आंखों के सहारे इसे एक चित्र में बदलते हुए. हम दृश्य के वातावरण के अनुसार ही ढल जाते हैं, खुद को उससे प्रभावित होने के लिए न सिर्फ छोड़ देते हैं. बल्कि इसकी लगातार खोज भी करते रहते हैं.

मैं एक दूसरा उदाहरण टाल्स्टाय के ही यहां से देता हूं. यह खिड़की के बाहर निहारने जैसी स्थिति से संबंधित है और यह बताता है कि किसी उपन्यास को पढ़ते हुए कोई कैसे उपन्यास के लैंडस्केप में दाखिल हो सकता है. यह दृश्य सार्वकालिक महानतम उपन्यास 'अन्ना कैरेनिना' का है. अन्ना की मास्को में व्रोंसकी से मुलाकात हुई है. रात में अपने घर लौटते के लिए वह पीटर्सबर्ग की ट्रेन में बैठी है. वह खुश है क्योंकि अगली सुबह वह अपने बच्चे और पति से मिलेगी. यहां इस उपन्यास के अनुवाद से मैं उद्धरण दे रहा हूं.

"अन्ना ने अपने हैंडबैग से एक पेपर नाइफ और एक उपन्यास निकाल लिया. लेकिन वह कुछ भी नही पढ़ पाती है. शुरू में वह लोगों की भागदौड़ से परेशान थी. और जब ट्रेन चलनी शुरू हो गयी, तो वह वहां मची शोर  से खुद को नहीं बचा पायी. उधर बांयी हाथ की तरफ की खिड़की में लगे शीशे पर बर्बफारी की तड़तड़ाहट, कंडक्टर का वहां से गुजरना, बाहर भीषण बर्फ की आंधी (ब्लीजार्ड) की बातें - इन सभी चीजों ने मिल कर उसका ध्यान बंटा दिया. आगे भी यह सारा कुछ ऐसा ही था. गाड़ी का उसी तरह हिलना और धक्का देना, खिड़की पर बर्फ का उसी तरह आवाज करते हुए गिरते रहना, तुरंत गरम हवा, तो तुरंत ठंडी हवा का बारी-बारी से आनेवाला झोंका, धुंधलकी रोशनी मे उन्हीं-उन्हीं चेहरों का फिर-फिर दिखाई पड़ना, बार-बार वही आवाजें- इन चीजों के बीच ही अन्ना ने पढ़ना शुरू  किया. वह जो पढ़ रही थी वह समझ रही थी. लेकिन इस तरह से पढ़ना उसके लिए सुखकारी नहीं था. दूसरों के जीवन की छाया का पीछा करना उसे अच्छा नहीं लग रहा था. उसमें खुद से उस दुनिया को जी लेने की जबरदस्त चाहत थी. जब वह किसी उपन्यास में किसी नायिका को किसी बीमार आदमी की तीमारदारी करती देखती थी, तो वह बीमार आदमी के कमरे के चारों और खामोश कदमों में चहलकदमी करना चाहती थी. जब वह किसी संसद सदस्य को कोई भाषण देते हुए सुनती थी, तो उसमें कामना जगती थी कि काश! यह भाषण मैं दे रही होती! जब उसने यह  पढ़ा कि किस  तरह से लेडी मैरी ने शिकारी कुत्ते को साध लिया और सबको आश्चर्यचकित कर दिया, तो उसके मन में भी वैसा खुद करने की तमन्ना जगी थी. लेकिन उसके पास ऐसा कुछ भी करने को नहीं था. और इसलिए धारदार चाकू पर अपनी छोटे हाथों की उंगलियां चलाते हुए, वह खुद को जबरदस्ती पढ़ने में लगा रही थी. "


अन्ना पढ़ पाने में असमर्थ क्यों है? क्योंकि वह व्रोंसकी के बारे में सोच पाने से खुद को नहीं रोक पा रही है. क्योकि वह जीना चाहती है. अगर वह उपन्यास पर एकाग्रचित्त हो पाती, तो वह आसानी से यह कल्पना कर पाती कि अपने घोड़े पर सवाल लेडी मैरी शिकाकारी कुत्तों का पीछा कर रही है. वह इस दृश्य को ऐसे देख पाती जैसे वह इसे अपनी खिड़की से देख रही हो, और धीरे-धीरे वह उस दृश्य में खुद शामिल हो जाती.

कई उपन्यासकारों को लगता है कि किसी उपन्यास के पहले पन्ने को पढ़ना किसी लैंडस्केप पेंटिंग में दाखिल होने जैसा है. चलिए याद करते हैं कि स्टेंडहल किस तरह से 'द रेड एंड दि ब्लैक' की शुरुआत करते हैं. हम सबसे पहले काफी दूर से वेरियर शहर को देखते हैं. वह पहाड़ी जिस पर यह अवस्थित है. सफेद घर जिन पर लाल खपरैलों वाली छतें हैं. फूलते हुए चेस्टनट के पेड़ गुच्छों में नजर आते हैं और किसी जमाने में  शहर को किले की तरह घेरनेवाला ढांचा जो अब अवशेषों में ही बचा है. नीचे डूब्स नदी बह रही है. तब हम उन आरा मिलों को देखते हैं, उन कारखानों को देखते हैं, रंगीन छींट वाले कपड़े- टाॅयल्स पिंटेस का निर्माण करते हैं.
सिर्फ एक पेज के बाद हमारी मुलाकात मेयर से हो चुकी होती है, जो इस उपन्यास का केंद्रीय किरदार है. हम उसके दिमाग के सांचे की पहचान भी कर चुके होते हैं. एक उपन्यास को पढ़ने का असली सुख दुनिया को बाहर बैठ कर देखने में नहीं है, बल्कि उन चरित्रों और किरदारों की आंखों से उस दुनिया को देखने में है, जिसमें वे रह रहे हैं. जब हम कोई उपन्यास पढ़ रहे होते हैं, तो हम लंबे-लंबे दृश्यों, जल्दी-जल्दी फिसल रहे क्षणों, सामान्य विचारों और विशिष्ट घटनाओं के बीच तेजी से खुद को डोलता हुआ पाते हैं. इतनी तेज रफ्तार से जो किसी भी दूसरी साहित्यिक विधा में संभव नहीं है.

जारी 


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