17 August 2009

बातें माथेरान के जंगलों की

अचानक जंगलों की बात?? जंगल तो अब आस-पास कही दीखते भी नहीं ,,दिल्ली के रिज को भी देखे अरसा हो गया है,बस में बैठता हूँ तो पता ही नहीं चलता की रिज कब बीत गया,या रिज या ऐसा कुछ अब इस शहर में है या भी नहीं..खैर मैं अभी पुणे में हूँ .यहाँ प्रकृति का अपना अलग ही मिजाज है.लेकिन बात पुणे की नहीं,यहाँ की प्रकृति की भी नहीं...बात माथेरान की..तकरीबन ८०० मीटर ऊंचाई पर बसे इस, दुनिया के सबसे छोटे हिल स्टेशन की, जो शायद एशिया का एकमात्र pedestrian हिल स्टेशन भी है ...
यहाँ . कल मुझे प्रकृति को नजदीक से देखने और उसकी खूबसूरती को अपने भीतर जज्ब करने का मौका मिला. माथेरान में बारिश बहुत होती है.अरब सागर से आने वाला बादल माथेरान में आकर दिल खोलकर बरसता है.अपने कंधे के ऊपर बादलों को महसूस करना कितना रोमांचकारी हो सकता है...खासतौर पर जब बारिश हो रही हो....इसको शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता..इसके लिए आपको खुद यहाँ होना पड़ेगा
लेकिन इस खूबसूरती तक पहुचने और उसका दोहन करने के इंसानी कवायदों ने यहाँ की प्रकृति को किस तरह नुक्सान पहुचाया है यह भी यहाँ आप बिना देखे नहीं रह पायेंगे..वैसे अब इन चीजों की और देखने और इन पर सोचने के लिए लोगों के पास शायद ही समय बचा है. टीवी पर दिखाए जा रहे गॉसिप स्टोरी में रमे लोगों,या बाजार की उठा पटक से पल छिन ख़ुशी और ग़म के बीच हिचकोले खाते लोगों के पास ना इस नुक्सान को देख पाने की आँख है ना शक्ति..
सदाबहार जंगल को माथेरान में देखने की मेरी तमन्ना, तमन्ना ही रह गयी.जो जंगल अब यहाँ बचा है वह दोयम दर्जे का ही कहा जा सकता है.चारों तरफ बोतलों और प्लास्टिक के बैग, चिप्स के पैकटों का अम्बार लगा हुआ है...सड़क और टॉय ट्रेन बनाने के लिए पहाड़ को काटने से प्राकृतिक तंत्र बिलकुल नष्ट हो गया है..झरने सूख गए है. शायद यहाँ कभी अनेको प्रजाति के पेड़ पौधे और जानवर खासतौर पर पक्षियाँ दिखाई देती होंगी ..लेकिन मैं यहाँ वैसा कुछ नहीं देख पाया... खूबसूरती को देखते हुए जब मुझे यह एहसास हुआ की इंसानी दखलंदाजी के कारण जितनी सुन्दरता मैं देख पा रहा हु..वह बस पुराने भव्य महल का एक बचा हुआ कोना मात्र है तब मुझे उस पूरे महल को ना देख पाने का दुःख सताने लगा..
यहाँ के एक स्थानीय निवासी ने बताया की अब यहाँ बारिश भी कम होती है...भू स्खलन का खतरा काफी बढ़ता जा रहा है..मिट्टियाँ पेडों की जड़ों से बह रही है...पानी की किल्लत हो गयी है...खूबसूरती तो कुछ बची ही नहीं...हाँ, टीवी, विदेशी गानों का शोर,होटलों के स्वीमिंग पूल में विहार करते युगल जोडियाँ जरूर आ गयी हैं और कुछ पैसे भी आने लगे हैं भले पानी लाने के लिए अब नीचे तक जाना पड़ता है .तब मेरा मन उदास हो गया..अखबार में पढता हु की सहयाद्री के सदाबहार वन जैव विविधता के हॉट स्पॉट हैं,मानवता के धरोहर हैं,भविष्य में मानव को जीवित रखने की उम्मीद दुनिया के ऐसे ही चन्द जगहों पर टंगी है,,,क्यूकि प्रकृति का खजाना अपने अक्षत रूप में जिन जगहों पर बचा है सहयाद्री भी उनमे से एक है...
लेकिन क्या हम भविष्य में इंसानी कौम को बचाने की कोशिश ऐसे ही कर रहे है.??.कुछ दिन पहले ही खबर पढ़ी की अमेजन के जंगल और कांगो के जंगल भी जल्दी ही आधे से कम रह जायेंगे....आने वाली सदी..बल्कि दशकों में इंसान कहाँ पनाह लेगा किस शस्य श्यामला हरित धरती से मनुहार करेगा ...यही सोच रहा हू....क्या कंप्यूटर इन्टरनेट या ऐसे ही आविष्कार प्रकृति का substitute बन पायेंगे? जवाब हम -आप सब जानते हैं..बस उसे समझने और कुछ करने की जरूरत महसूस नहीं करते...वैसे भी राखी के स्वम्बर से लेकर शाहरुख़ खान की बेइज्जती तक बहुत सारे ज्यादा जरूरी चीजें हमारे पास फिलहाल सोचने के लिए है..

4 comments:

  1. ये बात सच है की इंसान ने प्रकृति के साथ खिलवाड़ कर उसे नष्ट करने में बहुत योगदान दिया है लेकिन फिर भी आपकी तस्वीरों से माथेरान की खूबसूरती अभी भी झलक रही है...
    नीरज

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  2. हाँ मैं वही सोच रहा था की जब यहाँ के जंगल कभी अपने पूरे असबाब पर रहे होंगे तब कैसे लगते होंगे..और जब बारिश यहाँ आकर आगे बढ़ना भूल जाती होगी.तब क्या मंजर होता होगा?...वहाँ मैंने देखा कि पूरे पहाड़ से पानी रिस रहा है...यानी भूमिगत जलकुंड का नाश हो गया है और वे अनाथ हो कर बह रही हैं....जब लौट कर पुणे आया तब अखबार में पढ़ा कि पुणे में पानी कि किल्लत होने वाली है...उसी दी पढ़ा कि उत्तर भारत में भूमिगत जल समाप्त हो रहा है... उसी दिन पढ़ा कि इस साल मानसून ने धोखा दे दिया है..प्रकृति नष्ट हो रही है..सहयाद्री को बचाना अपने आपको बचाने के सामान है...अगर आज कहीं सुन्दरता दिखाई दे रही ही तब ये जरूरी है कि उसे बरकरार रखने कि कोशिश कि जाए...

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    awanish

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