26 August 2009

मंटो: निर्लिप्त घूरती आँखें





 आप  में से बहुतों ने मंटो की कहानी "खोल दो " को पढ़ा होगा.अगर आपने यह कहानी नहीं पढ़ी है तो आपके लिए यह एक अनियार्य कहानी की  तरह है. अखबारों,पत्रिकाओं,और टीवी में अभी जिस तरह जिन्ना और विभाजन छाया हुआ है उसने मुझे यह कहानी याद दिला दी.."खोल दो" ऐसी कहानी नहीं है जिसे आप याद रखना चाहते हैं,बल्कि यह उन कहानियों में से है जिन्हें आप भूल जान चाहते है..लेकिन फिर भी यह बार -बार आप तक लौट कर आती है..आपके सामने कुछ असहज सवाल खडा करने के लिए.आपको निस्तेज, सुन्न,सर्द आँखों से देखने के लिए..ये आँखे आप पर टिक जाती हैं और और धीरे धीरे आपको भी अपने आगोश में  लेने लगती हैं..एक जड़ता  आप पर हावी होने लगती है..मंटो की  यह कहानी आपके विवेक के स्थगित  कर देती है..आप सोचना चाहते हैं लेकिन कुछ  सोच नहीं पाते.. इंसानी क्रूरता ,वहशियत,बिना शोर किये,धीरे से सरक कर  पसीने से लथपथ चेहरे में चिपके गर्द की मानिंद आपके वजूद का अनचाहा हिस्सा बन  जाती  है. 

यहाँ मैं इस कहानी का एक अंश आपके सामने रख रहा हूँ..सिर्फ इसलिए कि भारत और पाकिस्तान के बंटवारे को राजनैतिक इतिहास की बहसों से पूरी तरह समझना मुमकिन नहीं है..यह बंटवारा राजनैतिक से कही ज्यादा सामाजिक और मानसिक था..मंटो की कहानियां इस बंटवारे के दौरान  इंसानियत और हैवानियत के बीच की  धुंधलाती लकीर को ताकती हुई कहानियां है..यहाँ विभाजन पर लिखी कई अन्य कहानियों की तरह घर,जमीन,सदियों के रिश्ते नाते और  सम्बन्ध के टूटने की  सामाजिक त्रासदी को उभारने कि जगह व्यक्ति की , मानसिक त्रासदी उसके मानसिक अंतर्द्वंद ,और मानसिक पतन को बयान किया  गया है .

.................एक स्ट्रेचर था ,जिस पर लाश पड़ी  थी..सराजुद्दीन छोटे-छोटे कदम उठाता उसकी और बढा..कमरे में अचानक रौशनी हुई..सराजुद्दीन ने लाश के जर्द चेहरे पर चमकता हुआ तिल देखा और चिल्लाया --"सकीना ! "
        डाक्टर जिसने कमरे की रौशनी की थी ने सराजुद्दीन से पूछा,  "क्या है ?"
     सराजुद्दीन के हलक से सिर्फ इस कदर निकल सका , "जी मैं .......जी मैं ........इसका बाप हूँ.."
    डाक्टर ने स्ट्रेचर पर पड़ी लाश की नब्ज टटोली और सराजुद्दीन से कहा ,"खिड़की खोल दो .."
  सकीना के मुर्दा जिस्म में जुम्बिश हुई ..बेजान हाथों से उसने अजारबंद खोला और सलवार नीचे सरका दी ..बूढा सराजुद्दीन ख़ुशी से चिल्लाया ,"जिंदा है--मेरी बेटी जिंदा है --.."डाक्टर सर से पैर तक पसीने में गर्क हो गया ...


(यकीन मानिए मैं ये लाइन  टाइप कर  रहा हूँ   और मेरे भीतर  एक अजब सी सिहरन हो रही है...एक मीलों तक फैली खामोशी मुझे  घेर रही है. )

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