शिव को देखने के कई तरीके हैं. शिव पहले अनार्य महादेव हैं. उन्हें दलितों भी देव कहा जाता है. आज के समय में वे सबसे पॉपुलर भगवान् हैं. शिवरात्रि के मौके पर पॉपुलर कल्चर में शिव पर यह लेख युवा पत्रकार पावस नीर ने लिखा है. : अखरावट
शिव-
देवादिदेव, महादेव, भोलेनाथ या महाकाल। रूप कोई भी हो लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं कि 33 करोड़ देवी-देवताओं के इस देश में शिव अलग स्थान रखते हैं। उनकी यह लोकप्रियता केवल धार्मिक ही नहीं है। देह पर भस्म रमाए, डमरू की ताल पर तांडव करने वाले, भांग का भोग लगाने वाले शिव किसी
भगवान से अधिक कोई रॉकस्टार लगते हैं।
ऐसे में
इस बात में कोई आश्चर्य नही है कि आज की युवा पीढ़ी में शिव सबसे लोकप्रिय है। खुद को धार्मिक
दिखाने में कोफ्त करने वाली युवा पीढ़ी को शिव अपने से लगते हैं।
न केवल
भारत बल्कि दुनिया भर में शिव की लोकप्रियता बढती जा रही है और शायद यही वजह है कि
आज के साहित्य से लेकर मनोरंजन की दुनिया में शिव का बोलबाला है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इन माध्यमों में शिव की महत्ता न केवल कायम है बल्कि उसे एक नए रूप
में देखा, समझा और परोसा भी जा रहा है।
क्यों प्रासंगिक हैं शिव
पौराणिक
किरदार हमेशा से हमारे साहित्य, सिनेमा और टीवी के लिए प्रेरणा का स्रोत
रहे हैं। हनुमान, राम या कृष्ण अभी भी हमारे
पसंदीदा किरदारों में से हैं और निस्संदेह शिव सबसे लोकप्रिय हैं। वह समाज से दूर अकेले रहते हैं। त्रिशूल लिए-सर्पमाला पहने
शमशानों या गुफाओं में घूमते रहते हैं। वह संन्यासी भी है और गृहस्थ भी। तंत्र-संगीत-कला के संरक्षक हैं। समाज में हाशिये पर खड़े लोगों
(भूतों-प्रेतों-असुरों) के प्रिय हैं। जेनरेशन नेक्स्ट
के शब्दों में कहें तो - शिव एक कूल डूड हैं। शिव का यही रूप लोगों को उनकी ओर आकर्षित
करता है। बाजार भी इस बात को
समझ रहा है और शायद यही
कारण है कि आदिदेव कहलाने वाले शिव अब नए रूप में नजर आते हैं।
शिव के
मिथक को लेकर लिखी गई नमिता गोखले की 'द बुक ऑफ़
शिवा' और एंडी मैकडेर्मोट की 'द वॉल्ट ऑफ़ शिवा' बेस्टसेलर्स में शामिल रहे हैं। इनमें भी
शिव की कहानी को अलग तरीके से देखा गया है। इनमे भी शिव सिर्फ एक ईश्वरीय शक्ति भर नहीं
हैं। वह कभी एक सस्पेंस थ्रिलर का हिस्सा हैं तो कहीं भारतीय दर्शन को समझने का एक
रास्ता।
कुछ ही
दिनों पहले बाज़ार में आई अमीश की 'द ओथ ऑफ़ वायुपुत्राज़' बेस्टसेलर्स में शामिल हो चुकी
है। यह अमीश की मेलुहा श्रृंखला का तीसरा और आखिरी उपन्यास है। इससे पहले उनकी 'दी इमोरट्ल्स ऑफ़ मेलुहा' और 'दी सीक्रेट ऑफ़ नागाज' की भी लाखों प्रतियाँ बिक चुकी
हैं। तो ऐसा क्या है जो अमीश
के इन उपन्यासों को इतना लोकप्रिय बना रहा है? वह है इनमें शिव का
चित्रण।
जेन नेक्स्ट के शिव
अमीश की
इन किताबों में शिव को नए रूप में देखा
गया है। अमीश के शिव भगवान नहीं हैं। उनकी शुरुआत किसी आम इंसान जैसी है। मानसरोवर
के पास रहने वाले एक कबीले के मुखिया से भारत का उद्धार करने की क्षमता रखने वाले नीलकंठ
तक का उनका सफ़र किसी ऐसे इंसान के कहानी है जिसपर अचानक ही महानता
लाद दी जाती है। शिव न सिर्फ यह भार उठाते हैं बल्कि सत्य की
लड़ाई को निर्णायक परिणति भी ले जाते है। दरअसल यह एक पूरी कहानी एक आम शिव के
महादेव बनने की है।
यह आम
शिव हम जैसा ही है। शिव के पौराणिक आचरण के दूर
वह हमें अपने ही दौर के किसी नायक सा लगता है। वह हमारी ही तरह प्रेम
करता है, दोस्तों के साथ मंडली बनाकर सुख-दुःख बांटता है, गाता है-नाचता है, निराश भी
होता है और कभी-कभी उसके मुह से गाली भी निकलती है। हालाँकि इन सब 'आम' चीज़ों के
बीच शिव में कुछ ख़ास बातें भी हैं। उसके अपने आदर्श है, वह
भेदभाव से ऊपर है, अपने मातहतों का दोस्त
है और सबसे बढ़कर एक सच्चा प्रेमी है।
शिव की यह बातें ही उन्हें युवा पीढ़ी का प्रिय बनाती है। सीधे शब्दों में शिव वैसे है जैसे हम सब बनना चाहते हैं। ग्लोबल होती इस दुनिया में शिव एक ऐसे हीरो के रूप में नजर आते
हैं जिसके आदर्श आज की पीढ़ी के मेल खाते हैं। साथ ही शिव का फक्कड़पन और बेफिक्र
अंदाज उन्हें हमारे नजदीक ले आते हैं। शायद शिव ही एकमात्र ऐसे देव हैं जिनके
प्रति भय और प्रेम की भावनाएं एक साथ मन में आती हैं।
किसी सुपरहीरो से कम नहीं
जब विनामिका कॉमिक्स ने अपनी नई
श्रृंखला के लिए लोगों को कोई पौराणिक किरदार सुझाने को कहा तो सबसे ज्यादा लोगों
ने शिव का नाम लिया। विनामिका कॉमिक्स की श्रृंखला ‘शिवा- द लिजेंड ऑफ इमॉर्टल्स’ में शिव के जीवन का अनछुए पहलुओं को
छुआ गया है। एक साक्षात्कार में विनामिका कॉमिक्स के सीईओ करन वीर
अरोड़ा कहते हैं- ‘शिव एक करिश्माई किरदार हैं। वह अन्य देवों की तरह परफेक्ट नहीं है।
वह क्रोधी हैं हैं, गलतियां करते हैं और यही वे हमें खुद जैसे लगते हैं। उनकी
कहानी में सबुकुछ है- रोमांस, एक्शन, ड्रामा। शिव शारीरिक रूप से भी एक चमत्कारिक व्यक्तित्व
हैं।‘
सिल्वर स्क्रीन पर भी छाए
साहित्य के आलावा फिल्मों, थिएटर और
टीवी में भी शिव छाए हुए हैं। करण जौहर के मेलुहा ट्रिलॉजी पर फिल्म बनाने की
खबरें हैं। फिल्म में शिव का किरदार हृतिक रोशन निभा सकते हैं।
इसके अलावा टीवी पर देवों
के देव महादेव खूब टीआरपी कमा रहा है। यूं तो यह शो शिव की पौराणिक कहानी पर
ही आधारित है लेकिन युवा पीढ़ी को ध्यान में रखते हुए इसका ट्रीटमेंट अलग तरीके से
किया गया है। किसी अन्य पौराणिक शो की तरह ही इसके सेट भव्य हैं लेकिन इसमें भी
असल ध्यान शिव को एक सामाजिक आदर्श के रूप में पेश करने पर है। शिव किसी ईश्वरीय देव से अधिक एक आदर्श युवा नायक नजर
आते हैं जिसकी सही और गलत की सीमाएं तय हैं। वह किसी के साथ भी अत्याचार होते नहीं
देख सकते चाहे वह असुर ही क्यों न हों। उन्हें अपने परिवार से प्रेम तो हैं लेकिन
उनकी गलतियां भी माफ नहीं करते। समय के हिसाब से वह मजाकिया भी हैं और क्रोध आने
पर संहारक भी बन जाते हैं।
सत्यम शिवम सुंदरम
दरअसल शिव का सबसे
बड़ा आकर्षण उनके चरित्र में हैं। शिव की सबसे बड़ी सफलता यह है कि वह सबसे हैं और
उनके लिए सभी बराबर हैं। उनका यही दैवी समाजवाद आज के दौर के उस युवा को लुभाता है
जो बाजार बनी इस दुनिया हिस्सा तो है लेकिन उसके बाहर जाने को छटपटा भी रहा है। यही बात उन्हें इस पीढ़ी के लिए एक ईश्वर से ज्यादा
एक आइकन बनाती है। तभी तो वे हमारी टी-शर्ट पर
नजर आते हैं और हमारे संगीत में उनकी छाप है। यह बात बाजार भी समझता
है और इसे भुनाता भी है। शायद यही वजह है कि बाजार और इंसान दोनों के लिए इस दौर
में भी शिव ही सत्य हैं और सुंदर भी।
(इस लेख के साथ अमीश त्रिपाठी का एक इंटरव्यू भी प्रकाशित हुआ था. शाम तक उस इंटरव्यू को भी उपलब्ध कराने कि कोशिश कि जायेगी)