मैं कोई कला का जानकार नहीं हूँ .संघ लोकसेवा की तैयारी के दौरान भी कला और संस्कृति के हिस्से को मैं सिर्फ गधों कि तरह रट लिया करता था..फिर विश्व कला के बारे में, वो भी एक अफ्रीकी देश की कला शैली के बारे में मुझे कोई जानकारी हो इसकी कोई संभावना नहीं है..दरअसल आज मेरी मुलाक़ात तंजानिया मूल की एक महिला से हुई..भारत में आजकल अफ्रीका और दक्षिण एशियाई देशों के काफी लोग इलाज कराने के लिए आते हैं..जिसे भारत सरकार मेडिकल टूरिस्म का नाम देती है..गुर्दे की खराबी का इलाज करा रहे या कैंसर से मरते एक आदमी और उसके परिवार के लिए इलाज के लिए भारत आना टूरिस्म है...ऐसा भारत सरकार के पर्यटन मंत्रालय का मानना है...खैर.. थोडी देर बात करने के बाद फातमा नाम की उस महिला ने हमें अपना तंजानिया का फोन नंबर .दिया..और कहा कि तंजानिया आना तो हामारे यहाँ जरूर आना..फिर उसे radiology वार्ड में बुला लिया गया और वो चली गई.
.दरअसल हुआ ये कि उस्से बात करते वक़्त मैं लाख चाहने के वावजूद तंजानिया की राजधानी याद नहीं कर पाया ..सिर्फ इतना याद आया कि यह केन्या के दक्षिण में और विक्टोरिया झील से सटा हुआ है..अभी तंजानिया कि राजधानी देखने के लिए विकिपेडिया का सहारा लिया..तब अचानक इस कला शैली से परिचय हुआ ..
मेकोंडे तंजानिया कि एक भाषा भी है और एक जनजाति भी..मेकोंडे कला इसी मेकोंडे जनजाति द्बारा विकसित एक पारंपरिक कलाशैली है.. कठोड़ और गहडे रंग के एबोनी की लकडी को तराश कर विभिन्न प्रकार की काष्ट प्रतिमाएँ बनायी जाती हैं,, 1950 के बाद माडर्न मेकोंडे आर्ट को काफी बढावा मिला है..परम्परागत रूप से इस शैली में घरेलू जीवन से जुड़े हुए चीजों की मूर्तियाँ बनायी जाती थी लेकिन अब abstract विचारों को भी मूर्तियों की शक्ल में ढालने की परम्परा शुरू हो गई है.
यूरोपीय इतिहासकारों ने कभी ना सिर्फ भारत,बल्कि तमाम एशियाई तथा अफ्रीकी देश को असभ्य और बर्बर बताकर प्रचारित किया था..मैं इस कला के नमूने को देखकर बस यही समझ पा रहा हूँ कि इतनी संमृद्ध कला शैली असभ्य और बर्बर लोगों के द्वारा तो विकसित नहीं की जा सकती..